विदेश डेस्क- ऋषि राज
इजरायली सेना (IDF) की मुख्य कानूनी अधिकारी मेजर जनरल यिफात तोमर-येरुशालमी ने गाजा युद्ध से जुड़ी एक बड़ी विवादास्पद घटना के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा उस समय आया जब एक वीडियो सामने आया, जिसमें इजरायली सैनिकों को फिलिस्तीनी बंदी के साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार करते हुए देखा गया। जांच में खुलासा हुआ कि इस वीडियो को अगस्त 2024 में लीक करने की मंजूरी खुद तोमर-येरुशालमी ने दी थी।
वीडियो में सैनिकों को एक फिलिस्तीनी कैदी को घसीटते हुए और उसके साथ हिंसक व्यवहार करते हुए देखा जा सकता है। यह फुटेज दक्षिण इजरायल के एसडी तेइमान हिरासत केंद्र का बताया जा रहा है, जहां 7 अक्टूबर 2023 के हमले के बाद पकड़े गए हमास आतंकवादियों और अन्य फिलिस्तीनी बंदियों को रखा गया था। उस हमले में सैकड़ों इजरायली नागरिक मारे गए थे, जिसके बाद गाजा युद्ध शुरू हुआ था।
जांच के दौरान तोमर-येरुशालमी ने स्वीकार किया कि उन्होंने “सुरक्षा कारणों” से यह वीडियो जारी करने की अनुमति दी थी, ताकि यह साबित हो सके कि इजरायली सेना के जवान बंदियों के साथ अनुशासन बनाए रख रहे हैं। लेकिन वीडियो के सार्वजनिक होते ही यह उलटा पड़ा — मानवाधिकार संगठनों ने इसे “गंभीर दुर्व्यवहार” बताया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इजरायल की आलोचना होने लगी।
अपने इस्तीफे में तोमर-येरुशालमी ने कहा, “मैंने अपने निर्णय की जिम्मेदारी स्वीकार की है। मुझे अब इस पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि एसडी तेइमान शिविर में बंद अधिकांश कैदी “खतरनाक आतंकवादी” हैं, लेकिन इससे यह तथ्य नहीं बदलता कि सेना को कानून और मानवता के दायरे में रहकर ही काम करना चाहिए। उनके इस्तीफे के बाद इजरायल में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी तेज हो गई हैं। विदेश मंत्री इसराइल कैट्ज़ ने कहा, “जो कोई भी इजरायली सैनिकों पर झूठे आरोप लगाता है, वह आईडीएफ की वर्दी पहनने के योग्य नहीं है।” वहीं, पुलिस मंत्री इतामार बेन-ग्वीर ने तोमर-येरुशालमी के इस्तीफे का स्वागत किया और कहा कि “ऐसे और कानूनी अधिकारियों की जांच होनी चाहिए जिन्होंने सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया।”
बेन-ग्वीर ने एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें वे फर्श पर बंधे फिलिस्तीनी बंदियों के ऊपर खड़े दिख रहे हैं। उन्होंने कहा, “ये वही आतंकवादी हैं जिन्होंने 7 अक्टूबर को निर्दोष इजरायली नागरिकों का खून बहाया था। इन्हें मौत की सजा मिलनी चाहिए।” इस घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संगठनों ने इजरायल से मांग की है कि वह गाजा युद्ध के दौरान बंदियों के साथ किए गए व्यवहार की पारदर्शी और निष्पक्ष जांच करे। वहीं, सेना ने आश्वासन दिया है कि वह सभी आरोपों की जांच निष्पक्ष रूप से करेगी।
यह इस्तीफा न केवल इजरायली सेना के भीतर नैतिक संकट को उजागर करता है, बल्कि गाजा युद्ध के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन पर भी गंभीर सवाल उठाता है।







