मुस्कान कुमारी, नेशनल डेस्क
दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए की गई क्लाउड सीडिंग के दावों पर अब सवालों का सैलाब आ गया है। आईआईटी कानपुर की प्रारंभिक रिपोर्ट में प्रदूषण कम होने का दावा किया गया है, लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आधिकारिक आंकड़े पूरी तरह उलटी तस्वीर पेश कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को हुए दो दौर के अभियान से पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में कमी आई, जबकि वास्तविक डेटा बताता है कि सुधार तो अभियान शुरू होने से पहले ही शुरू हो चुका था और बाद में प्रदूषण फिर से चढ़ गया। इस विरोधाभास ने क्लाउड सीडिंग की सफलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रिपोर्ट के दावे: कमी का आंकड़ा या भ्रम?
आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट में मंगलवार दोपहर के दो दौर में हुए क्लाउड सीडिंग अभियान के बाद तीन स्थानों पर प्रदूषण स्तर में गिरावट का जिक्र है। पहला दौर दोपहर 12:13 से 2:30 बजे तक चला, जबकि दूसरा 3:45 से 4:45 बजे तक। रिपोर्ट के मुताबिक, मयूर विहार में सीडिंग से पहले पीएम 2.5 का स्तर 221 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो पहले दौर के बाद घटकर 207 रह गया। पीएम 10 207 से लुढ़ककर 177 पर आ गया। करोल बाग में पीएम 2.5 230 से 206 और पीएम 10 206 से 163 पर पहुंचा। बुराड़ी में भी यही कहानी दोहराई गई—पीएम 2.5 229 से 203 और पीएम 10 209 से 177।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सीडिंग के बाद इन स्थानों पर कोई खास बारिश नहीं हुई, जो प्रदूषण धोने का मुख्य उद्देश्य था। लेकिन विशेषज्ञों का ध्यान इस ओर गया कि रिपोर्ट में पीएम 2.5 का स्तर पीएम 10 से ज्यादा बताया गया है, जो वैज्ञानिक रूप से असंभव है। दरअसल, पीएम 10 में पीएम 2.5 के कण शामिल होते हैं, इसलिए इसका स्तर हमेशा ज्यादा या बराबर होना चाहिए। रिपोर्ट में माप के समय का जिक्र न होने से यह सवाल उठा कि आंकड़े अलग-अलग समय के हैं या कोई गड़बड़ी है।
आधिकारिक डेटा की उल्टी गाथा
सीपीसीबी और डीपीसीसी के आधिकारिक मॉनिटरिंग डेटा इस दावे को पूरी तरह नकारते नजर आते हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स (एQI) में सुधार क्लाउड सीडिंग शुरू होने से घंटों पहले ही शुरू हो चुका था। बुराड़ी में डीपीसीसी के आंकड़ों के अनुसार, सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक पीएम 2.5 198 से घटकर 88 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रह गया। अभियान के दौरान यह 92 से 97 के बीच रहा, लेकिन आधी रात तक 144 पर पहुंच गया। पीएम 10 दोपहर 12 बजे तक 295 से 139 पर आया, लेकिन शाम तक 209 हो गया। कुल मिलाकर, सोमवार आधी रात से मंगलवार दोपहर 1 बजे तक बुराड़ी का औसत एQI 336 से 319 पर था—यह गिरावट अभियान से पहले की थी।
पटपड़गंज, जो मयूर विहार के सबसे करीब है, में दोपहर 1 बजे पीएम 2.5 105 था, जो शाम 6 बजे 149 हो गया और 8 बजे 145 पर आया—कोई स्थिर कमी नहीं। पीएम 10 215 से शाम तक 323 पर चढ़ा, उसके बाद दो घंटे में 77 अंकों की गिरावट आई, लेकिन वह भी अस्थायी रही। मंदिर मार्ग, करोल बाग के निकट, में उतार-चढ़ाव तो दिखा, लेकिन कोई खास बदलाव नहीं। नोएडा में हल्का सुधार हुआ, मगर दो घंटे बाद ही प्रदूषण स्तर वापस बढ़ गया। ये आंकड़े साफ बयां कर रहे हैं कि क्लाउड सीडिंग का असर नगण्य था या फिर प्राकृतिक हवा-पवन की वजह से सुधार हो रहा था।
वैज्ञानिक विरोधाभास और सवालों का दौर
क्लाउड सीडिंग, जो बादलों में रसायनों डालकर बारिश पैदा करने की तकनीक है, दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरों के लिए उम्मीद की किरण मानी जा रही थी। लेकिन इस रिपोर्ट ने न सिर्फ सफलता पर सवाल उठाए, बल्कि डेटा के निष्पक्ष विश्लेषण पर भी उंगली उठाई। पर्यावरण विश्लेषकों का कहना है कि माप के समय का अभाव और पीएम स्तरों की असंगति डेटा की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाती है। प्रदूषण स्तर में जो कमी दिखाई गई, वह अभियान के बाद टिक नहीं पाई—जल्द ही वापस चढ़ गया।
मंगलवार के अभियान के बाद दिल्ली का समग्र एQI 'बहुत खराब' श्रेणी में ही रहा। रिपोर्ट में बारिश न होने का जिक्र तो है, लेकिन आधिकारिक डेटा से साफ है कि प्रदूषण धुलने की कोई प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई। पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा और आईआईटी कानपुर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, जिससे विवाद और गहरा गया। विशेषज्ञों की मांग है कि डेटा का स्वतंत्र सत्यापन हो, ताकि यह पता चले कि सुधार का श्रेय किसे दिया जाए—क्लाउड सीडिंग को या मौसम की मार्गदर्शिका को।
प्रदूषण संकट में तकनीक की कसौटी
दिल्ली में सर्दियों का प्रदूषण संकट हर साल गहराता है, और क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीकों पर भरोसा बढ़ रहा है। लेकिन इस विरोधाभास ने न सिर्फ इस अभियान की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े किए, बल्कि सरकारी प्रयासों की पारदर्शिता पर भी। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि पटपड़गंज जैसे इलाकों में प्रदूषण स्तर अभियान के बाद उल्टा बढ़ा, जो रिपोर्ट के दावों से बिल्कुल उलट है। नोएडा में जो हल्की राहत मिली, वह भी क्षणिक साबित हुई। विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग के लिए सही मौसम और बादल जरूरी हैं, लेकिन दिल्ली के घने धुंध में यह कितना कारगर हो सकता है, यह अब बहस का विषय है। डेटा में समयबद्ध मॉनिटरिंग की कमी ने संदेह को हवा दी है। क्या यह तकनीक प्रदूषण का रामबाण है या सिर्फ आंकड़ों का खेल? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए निष्पक्ष जांच जरूरी है।
भविष्य की चुनौतियां
इस विवाद ने क्लाउड सीडिंग के भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दिल्ली सरकार ने इसे प्रदूषण कम करने का हथियार बनाया था, लेकिन आंकड़ों का यह टकराव योजना पर ब्रेक लगा सकता है। पर्यावरणविदों की चेतावनी है कि बिना ठोस सबूत के ऐसे दावे जनता का भरोसा तोड़ सकते हैं। मंडल मार्ग जैसे स्थानों पर उतार-चढ़ाव सामान्य है, लेकिन रिपोर्ट का दावा इसे जोड़कर देखने की कोशिश करता नजर आता है।
अब सवाल यह है कि अगले अभियान में डेटा कैसे पेश किया जाएगा। बुराड़ी में आधी रात तक प्रदूषण का उछाल साफ संकेत देता है कि स्थायी समाधान की जरूरत है। तकनीक पर भरोसा तो ठीक, लेकिन आंकड़ों की पारदर्शिता के बिना यह सिर्फ जुमला साबित हो सकता है।







