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जन-धन योजना के 11 साल: आर्थिक समावेशन से आत्मनिर्भरता की ओर

नेशनल डेस्क, श्रेयांश पराशर l 

प्रधानमंत्री जन धन योजना ने 11 वर्ष पूरे कर लिए हैं और इस अवधि में यह कार्यक्रम देश की सबसे सफल वित्तीय समावेशन योजनाओं में से एक बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर कहा कि इस योजना ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को न केवल वित्तीय तंत्र से जोड़ा है बल्कि उन्हें अपनी किस्मत खुद संवारने का अवसर भी दिया है।

2014 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य गरीबों और वंचित वर्ग को बैंकिंग सुविधा से जोड़ना था। आंकड़ों के अनुसार अब तक 56.21 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके हैं, जिनमें 2.65 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा है। इनमें से बड़ी संख्या ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की है, साथ ही 56 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए हैं। यह दर्शाता है कि योजना ने न केवल बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बढ़ाई, बल्कि महिला सशक्तिकरण और वित्तीय स्वतंत्रता को भी मजबूती दी।

सरकार ने जन धन खातों के साथ मुफ्त रुपे डेबिट कार्ड, 2 लाख रुपये तक का दुर्घटना बीमा और 10 हजार रुपये तक की ओवरड्राफ्ट सुविधा भी उपलब्ध कराई है। इससे डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा मिला है और आम नागरिकों में वित्तीय सुरक्षा की भावना भी मजबूत हुई है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस मौके पर कहा कि यह योजना आर्थिक वृद्धि और विकास का प्रमुख चालक बनी है। वहीं, राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने इसे पूरी दुनिया की सबसे सफल वित्तीय समावेशन योजनाओं में से एक बताया। वास्तव में, इस योजना के जरिए बैंक खाते गरीबों और वंचित वर्ग के लोगों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से शामिल करने का साधन बने हैं।

हाल ही में सरकार ने 2.7 लाख ग्राम पंचायतों में विशेष शिविर आयोजित करने का निर्णय लिया है, ताकि अब तक बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों को भी जोड़ा जा सके। यह कदम इस योजना की समावेशी सोच को और व्यापक बनाता है।

कुल मिलाकर, जन धन योजना ने न केवल वित्तीय समावेशन को नई ऊंचाई दी है बल्कि करोड़ों गरीब परिवारों को आत्मनिर्भरता और आर्थिक सुरक्षा की दिशा में सशक्त भी किया है। यह योजना “सबका साथ, सबका विकास” की परिकल्पना को जमीनी स्तर पर साकार करने का एक सशक्त उदाहरण है।