
स्टेट डेस्क, वेरोनिका राय |
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा राजनीतिक झटका लगा है। जदयू के वरिष्ठ नेता और अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव धर्मेंद्र चौहान ने शनिवार को जनता दल यूनाइटेड से इस्तीफा देकर प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी का दामन थाम लिया।
धर्मेंद्र चौहान पिछले 26 वर्षों से जदयू के साथ जुड़े हुए थे। वे समता पार्टी काल से ही नीतीश कुमार के करीबी माने जाते रहे हैं और पार्टी को विभिन्न क्षेत्रों में मजबूती प्रदान करने में सक्रिय भूमिका निभाते आए हैं। उन्होंने संगठनात्मक स्तर पर कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई हैं और जदयू के रैली, सम्मेलन और चुनावी अभियानों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।
शनिवार को नालंदा जिले के एकंगरसराय स्थित सुखदेव अकादमी मैदान में आयोजित एक भव्य जनसभा में धर्मेंद्र चौहान ने अपने हजारों समर्थकों के साथ जन सुराज पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। इस मौके पर जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर भी मौजूद रहे। सभा के दौरान चौहान ने मंच से घोषणा की कि वे बिहार में भ्रष्टाचार मुक्त, परिवारवाद से दूर एक बेहतर शासन व्यवस्था के लिए प्रशांत किशोर के साथ कदम से कदम मिलाकर काम करेंगे।
धर्मेंद्र चौहान नोनिया, बिंद, बेलदार समाज से आते हैं और इस समाज का व्यापक जनाधार है। वे इस समाज को संगठित करने के लिए लंबे समय से कार्य कर रहे हैं। चौहान "बिहार राज्य नोनिया बिंद बेलदार महासंघ" के प्रदेश संयोजक हैं और "अति पिछड़ा अनुसूचित जाति जनजाति विकास मंच" के भी सक्रिय नेता हैं। उनके जदयू छोड़ने से पार्टी को सामाजिक समीकरणों में बड़ी सेंध लग सकती है क्योंकि इन समुदायों का विधानसभा और लोकसभा चुनावों में निर्णायक प्रभाव रहता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धर्मेंद्र चौहान के जन सुराज में शामिल होने से प्रशांत किशोर की पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती मिलेगी, विशेषकर अति पिछड़ा वर्ग के बीच उनकी पकड़ बढ़ेगी। इसके अलावा इस्लामपुर भाजपा के महामंत्री नीरज कुमार चंद्रवंशी ने भी जन सुराज की सदस्यता लेकर बीजेपी को झटका दिया है।
अपने संबोधन में चौहान ने कहा, “बिहार को बदलाव की जरूरत है। मैं प्रशांत किशोर की सोच से प्रभावित हूं और भ्रष्टाचार व परिवारवाद से मुक्त शासन के लिए पूरी ताकत झोंक दूंगा।” उन्होंने आगे कहा कि जन सुराज को गांव से लेकर प्रदेश स्तर तक मजबूत करने के लिए दिन-रात मेहनत करेंगे।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार की राजनीति आगामी चुनावों से पहले बड़े बदलावों के दौर से गुजर रही है। नीतीश कुमार के लिए यह संकेत है कि उनके पारंपरिक सहयोगी भी अब विकल्प की तलाश में हैं।