
स्टेट डेस्क, प्रीति पायल |
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरण में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। रालोजपा के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने राजद के प्रस्ताव को नकार दिया है। यह निर्णय 12 अक्टूबर 2025 को चर्चा का मुख्य विषय बना।
राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने रालोजपा को महागठबंधन में सम्मिलित होने का प्रस्ताव दिया था। राजद ने 3-4 विधानसभा सीटों का ऑफर किया, जबकि पारस ने 8 सीटों की मांग रखी। साथ ही राजद ने रालोजपा के पूर्ण विलय का सुझाव दिया था, जिससे रालोजपा के उम्मीदवार राजद के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ते। पारस ने इस प्रस्ताव को "अपमानजनक" करार देते हुए खारिज कर दिया।
पटना में 11-12 अक्टूबर को आयोजित रालोजपा की कार्यकारिणी बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। पारस ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी की स्वतंत्र पहचान बनी रहेगी।
राजद के प्रस्ताव को ठुकराने के बाद, पारस अब असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। यह समझौता मुख्यतः मुस्लिम-दलित वोट बैंक को मजबूत बनाने के उद्देश्य से किया जा रहा है, विशेषकर सीमांचल और मगध क्षेत्र में।
पारस ने मीडिया से बातचीत में बताया कि 17 अक्टूबर तक का समय है और आने वाले दिनों में अंतिम फैसला घोषित किया जाएगा।
रालोजपा के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और प्रभावशाली नेता सूरजभान सिंह की स्थिति अभी भी अनिश्चित है। यद्यपि वे कार्यकारिणी बैठक में उपस्थित थे, लेकिन उनके परिवार को राजद से जुड़ने के प्रस्ताव मिले हैं। सूरजभान की पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन सिंह के लिए राजद में स्थान की संभावना है। मोकामा और लखीसराय सीटों के लिए उनकी एंट्री की चर्चा चल रही है।
यह निर्णय महागठबंधन के लिए झटका साबित हो सकता है क्योंकि रालोजपा के पास कुशवाहा समुदाय का मजबूत समर्थन है। तेजस्वी यादव की "A to Z" रणनीति को यह नुकसान पहुंचा सकता है और MY (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूले को कमजोर कर सकता है।
NDA की दृष्टि से भी यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है। पारस पहले NDA के साथ थे लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज हो गए। चिराग पासवान के साथ पुरानी शत्रुता के कारण वे NDA से दूरी बना रहे हैं।
बिहार चुनाव दो चरणों में संपन्न होगा और पहले चरण का नामांकन 17 अक्टूबर को समाप्त होगा। पारस की यह रणनीति विपक्षी वोटों के बंटवारे का कारण बन सकती है। आगामी 15-16 अक्टूबर तक पारस की अंतिम रणनीति स्पष्ट होने की उम्मीद है।