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फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों की प्रक्रिया शुरू की

विदेश डेस्क, ऋषि राज |

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों की चिंताएं एक बार फिर गहरा गई हैं। इसी कड़ी में फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त राष्ट्र के तहत ईरान पर प्रतिबंध लगाने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन तीनों देशों का कहना है कि ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रित करने के लिए हुए समझौतों का पालन नहीं किया है और वह लगातार यूरेनियम संवर्धन की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम तथाकथित “स्नैपबैक प्रतिबंधों” को लागू करने की दिशा में पहला कदम है। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य ईरान को अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करने के लिए मजबूर करना है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका ने इस कदम का स्वागत किया है और कहा है कि यह ईरान पर दबाव बढ़ाने का सही समय है।

अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि हाल के वर्षों में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया है, जिससे मध्यपूर्व की स्थिरता और वैश्विक शांति पर खतरा मंडरा रहा है। वाशिंगटन का कहना है कि अगर इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो ईरान जल्द ही हथियार-स्तरीय परमाणु क्षमता हासिल कर सकता है।

हालांकि, ईरान ने इस कदम की कड़ी निंदा की है। तेहरान सरकार ने पश्चिमी देशों पर आरोप लगाया कि वे अनुचित तरीके से दबाव बना रहे हैं और इस तरह की कार्रवाई केवल कूटनीतिक प्रयासों को कमजोर करेगी। ईरान ने चेतावनी दी है कि यदि प्रतिबंधों को दोबारा लागू किया गया तो इसके “गंभीर और दूरगामी परिणाम” हो सकते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ा सकता है, क्योंकि रूस और चीन पहले भी ईरान के खिलाफ कठोर कदमों का विरोध करते रहे हैं। यदि संयुक्त राष्ट्र में इस पर सहमति नहीं बनती, तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नया टकराव खड़ा हो सकता है।

कुल मिलाकर, यह कदम दर्शाता है कि पश्चिमी देश अब ईरान को लेकर और अधिक सख्त रुख अपनाने के लिए तैयार हैं। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि ईरान प्रतिबंधों को लेकर नरम रुख अपनाता है या टकराव की राह पर चलता है।