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लोकल डेस्क, एन के सिंह |
मोतिहारी के एक गाँव में ब्राह्मणों के प्रवेश पर रोक, क्या खूनी संघर्ष की आशंका? टिकुलिया गांव में ब्राह्मणों के प्रवेश पर रोक से बिहार में जातीय तनाव चरम पर, प्रशासन की निष्क्रियता और भड़काऊ बयानों से खूनी संघर्ष का खतरा।
पूर्वी चंपारण: बिहार एक बार फिर जातीय उन्माद की चपेट में आता दिख रहा है। पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी स्थित आदापुर थाना क्षेत्र के टिकुलिया गांव में एक नया और गंभीर विवाद खड़ा हो गया है, जहां ग्रामीणों ने ब्राह्मण पुजारियों के पूजा-पाठ करने पर रोक लगाने का बोर्ड लगा दिया है। यह घटना तब और अधिक चिंताजनक हो जाती है जब हाल ही में उत्तर प्रदेश के इटावा में एक कथावाचक के साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद बिहार में भी जातीय तनाव की लहर फैल रही है।
इस पूरे मामले पर न तो जिला प्रशासन और न ही राज्य सरकार ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई की है, जिससे समाज में आक्रोश और सरकार के प्रति नफरत की भावना बढ़ती जा रही है।
राजद प्रवक्ता के बयान से सुलगी आग, अब मोतिहारी में नया विवाद
यह जातीय तनाव ऐसे समय में बढ़ रहा है जब पिछले दिनों राजद के एक प्रवक्ता द्वारा स्वर्ण के पूर्वज ब्रह्मेश्वर मुखिया के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर अभी भी बवाल शांत नहीं हुआ है। ब्रह्मेश्वर मुखिया रणवीर सेना के संस्थापक थे और उनके खिलाफ की गई टिप्पणी ने पहले ही समाज में एक बड़ा विभाजन पैदा कर दिया है। इस बीच, मोतिहारी के आदापुर में ब्राह्मणों को पूजा-पाठ करने से रोकने वाले इस बोर्ड ने आग में घी डालने का काम किया है, जिससे स्थिति और भी विस्फोटक हो गई है।
गांव के एंट्री पॉइंट और बिजली के खंभों पर चेतावनी
टिकुलिया गांव में ग्रामीणों ने गांव के एंट्री पॉइंट पर स्पष्ट रूप से एक बड़ा बोर्ड लगा दिया है, जिस पर बड़े अक्षरों में लिखा है कि "इस गांव में ब्राह्मणों को पूजा कराना सख्त मना है, पकड़े जाने पर दंड के भागी होंगे।" यह चेतावनी केवल एक स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि गांव से गुजरने वाले बिजली के तमाम खंभों पर भी यही संदेश लिखा गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह एक संगठित और व्यापक विरोध प्रदर्शन है।
ग्रामीणों का स्पष्टीकरण: 'वेद के ज्ञानियों का समर्थन, मांसाहारियों का विरोध'
हालांकि यह प्रतिबंध ब्राह्मण समुदाय पर लगाया गया है, ग्रामीणों का कहना है कि उनका विरोध सभी ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं है। उनका स्पष्टीकरण है कि उनका विरोध उन ब्राह्मणों के खिलाफ है जिन्हें वेद का ज्ञान नहीं है और जो मांस-मदिरा का सेवन करते हैं। वे उन लोगों का समर्थन करते हैं जो वेद के ज्ञाता हैं, भले ही वे किसी भी जाति के क्यों न हों। यह स्पष्टीकरण इस मुद्दे को और भी जटिल बनाता है, क्योंकि यह "योग्य" और "अयोग्य" ब्राह्मणों के बीच एक विभाजन पैदा करता है।
इटावा की घटना से जुड़ाव और भविष्य की चिंता: क्या खूनी संघर्ष की आशंका?
हाल ही में इटावा में कथावाचक मुकुट मणि सिंह यादव के साथ हुई दुर्व्यवहार की घटना ने इस जातीय उन्माद को और हवा दी है। इस तरह की घटनाएं सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ती हैं और जातिगत भेदभाव को बढ़ाती हैं। यदि समय रहते जिला प्रशासन और सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाला समय भयावह हो सकता है। जानकारों का मानना है कि यह जातीय उन्माद खूनी संघर्ष का रूप ले सकता है, जिससे राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति और भी बिगड़ सकती है।