
नेशनल डेस्क,नीतीश कुमार |
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तेजी से बढ़ा धर्मांतरण, 11 जिलों में गहन पड़ताल
पिछले कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ईसाई धर्म को अपनाने की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं। बांसवाड़ा, बस्तर और झाबुआ जैसे इलाकों में यह बदलाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसकी पृष्ठभूमि में स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक मदद जैसे कारकों की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है।
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के छह गांवों में 8 साल पहले तक 800 परिवारों में से लगभग 70 ईसाई थे, जो अब बढ़कर 900 में से करीब 450 हो गए हैं। यह 41% की बढ़ोतरी है। पहले जहां सिर्फ एक चर्च था, अब चर्चों की संख्या चार गुना हो गई है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के सिटोंगा गांव में 400 में से 270 से अधिक परिवार अब ईसाई धर्म अपना चुके हैं। वहां बीते दो दशकों में लगभग 200 परिवारों ने धर्म परिवर्तन किया है।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर, झाबुआ, अलीराजपुर, धार, रतलाम और छतरपुर जिलों में भी इसी तरह की स्थिति पाई गई है। रायपुर में 10 लोगों पर धर्मांतरण करवाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। झाबुआ के डूंगरा धन्ना गांव में अधिकांश लोगों के ईसाई नाम हैं, लेकिन उनके पिता के नाम और उपनाम अब भी हिंदू हैं।
सिटोंगा गांव के थॉमस (पिता: जयराम सिंघारिया) ने बताया कि बीमार होने पर चर्च में प्रार्थना करने के बाद स्वास्थ्य लाभ हुआ, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। वहीं, जेवियर निनामा, जो मिशनरी स्कूल में कार्यरत हैं, बताते हैं कि उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया लेकिन अपने आदिवासी परंपराओं को भी मानते हैं। यहां की 25% आबादी अब धर्म बदल चुकी है।
राजस्थान के गंगानगर जिले की सुमन नामक महिला का कहना है कि उन्हें दिल्ली ले जाकर बपतिस्मा की रस्म करवाई गई और 2-5 हजार रुपये की सहायता भी दी गई। बांसवाड़ा और उदयपुर जिलों के कई गांवों—जैसे गडोली, जाम्बुड़ी, शिवपुरा, जगनाथपुरा और ओबरा—से भी ऐसे उदाहरण सामने आए हैं।
बांसवाड़ा में ‘ईसा मसीह संस्था’ ने हैंडपंप लगवाए हैं जिनके पास बाइबिल के उद्धरण खुदे पत्थर लगाए गए हैं। जैसे—“इस जल को पीने वाला फिर प्यासेगा, पर यीशु के जल को पीने वाला अनंतकाल तक नहीं प्यासेगा।” सेंद गांव में यह स्थिति देखी गई है।
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में अंतिम संस्कार को लेकर विवाद बढ़ रहा है। धर्म परिवर्तन के बाद गांव में शवों को दफनाने को लेकर हिंदू संगठनों और ईसाई समुदायों के बीच टकराव हो रहा है। नारायणपुर और अंबिकापुर जैसे क्षेत्रों में यह समस्या अधिक गहराई से देखी जा रही है। बेहरापारा गांव के 25 घरों में से 19 ने बीते 10 वर्षों में ईसाई धर्म अपना लिया है। क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल इसे सरकारी दमन बता रहे हैं।
क्या धर्म परिवर्तन के बाद अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा? हाईकोर्ट एडवोकेट हिमांश निगम का कहना है कि संविधान (अनुसूचित जाति आदेश, 1950) के अनुसार, अनुसूचित जाति का दर्जा केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म मानने वालों को ही मिलता है। यदि किसी व्यक्ति ने कानूनी रूप से धर्म परिवर्तन नहीं किया है, तो यह अदालत के निर्णय पर निर्भर करता है। अनुसूचित जनजाति का दर्जा उस स्थिति में बना रह सकता है यदि धर्म बदलने के बावजूद वह व्यक्ति पारंपरिक जनजातीय रीति-रिवाजों का पालन करता हो।