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महाराष्ट्र में 3 भाषा नीति रद्द: मराठी अस्मिता की रक्षा या राजनीतिक दबाव?

नेशनल डेस्क, वेरोनिका राय |

महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार को राज्य में लागू की जाने वाली प्रस्तावित तीन भाषा नीति को रद्द करने का फैसला लिया है। यह निर्णय राज्य की भाषा सलाहकार समिति और जनता के तीव्र विरोध के बाद आया है। आलोचकों ने इस नीति को मराठी भाषा और अस्मिता के खिलाफ बताते हुए सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया था।

क्या थी तीन भाषा नीति?

तीन भाषा नीति के अंतर्गत सरकार का उद्देश्य था कि कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को मराठी और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाए। यह नीति राज्य के सभी मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में लागू की जानी थी। हालांकि, सरकार का कहना था कि यदि किसी स्कूल में प्रति कक्षा कम से कम 20 छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा (जैसे कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आदि) को पढ़ना चाहें, तो उन्हें हिंदी की जगह वह भाषा पढ़ाई जा सकती थी।

इस प्रस्ताव को माशेलकर समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था, जिसका उद्देश्य राज्य में भाषाई विविधता को बढ़ावा देना और राष्ट्रीय एकता को मजबूती देना बताया गया था।

विरोध क्यों हुआ?

यह प्रस्ताव राज्य में आते ही विवाद का विषय बन गया। विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने इसे "मराठी अस्मिता पर आघात" और हिंदी को जबरन थोपने का प्रयास बताया। आलोचकों ने यह भी कहा कि इस नीति से मातृभाषा मराठी को प्राथमिक शिक्षा से हटा दिया जाएगा और छात्रों की शुरुआती शिक्षा में अव्यवस्था फैलेगी।

इस विरोध के बीच महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त भाषा सलाहकार समिति ने भी इस प्रस्ताव का खुला विरोध किया। समिति की पुणे में हुई बैठक में 27 में से 20 सदस्यों ने भाग लिया और हिंदी को कक्षा 5 से पहले लागू न करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।

समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम हिंदी या किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर हिंदी को थोपना शैक्षणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अनुचित है।”

देशमुख ने बताया कि यह पहली बार है जब सरकार द्वारा गठित किसी समिति ने खुले तौर पर सरकार के निर्णय का विरोध किया है। उन्होंने आगे कहा कि प्रारंभिक शिक्षा के वर्षों में बच्चों को मजबूत भाषाई नींव देने के लिए मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए।

समिति ने पहले भी सरकार को इस बारे में आगाह किया था कि हिंदी को कक्षा 1 से 5 के छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से पढ़ाना उचित नहीं होगा, लेकिन उनकी बातों को तब नजरअंदाज कर दिया गया था।

सरकार ने क्यों लिया यू-टर्न?

भारी जनविरोध, राजनीतिक दबाव और मराठी भाषी संगठनों के आक्रोश को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने अंततः इस प्रस्ताव को रद्द करने का फैसला किया। इस फैसले से राज्य में मराठी भाषा प्रेमियों और क्षेत्रीय अस्मिता को प्राथमिकता देने वालों के बीच संतोष का माहौल है।

भाषा सलाहकार समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री से भी औपचारिक रूप से नीति को वापस लेने का अनुरोध किया गया है।

क्या बदलेगा इस फैसले के बाद?

  • अब कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को हिंदी तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य नहीं पढ़ाई जाएगी।
  • छात्रों की प्राथमिक शिक्षा पर अब मराठी भाषा का अधिक ध्यान रहेगा।
  • यदि छात्र अन्य भारतीय भाषाएं सीखना चाहें, तो स्कूल उन्हें वह सुविधा प्रदान कर सकेंगे।
  • मराठी भाषा को प्राथमिक शिक्षा में और मजबूती मिलेगी, जिससे स्थानीय सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा मिलेगा।

तीन भाषा नीति को लेकर उठा विवाद महाराष्ट्र में एक बार फिर भाषाई अस्मिता और केंद्र-राज्य संबंधों के बीच खींचतान को उजागर करता है। हालांकि सरकार ने अभी के लिए इसे टाल दिया है, लेकिन शिक्षा नीति में भाषाओं को लेकर संतुलन बनाना भविष्य में भी एक जटिल चुनौती बना रहेगा।