
विदेश डेस्क, श्रेयांश पराशर |
Prada के स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवियर शो में भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पल्स ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय रैम्प पर कदम रखा और फैशन जगत में देसी शिल्प के जलवे बिखेर दिए।
कोल्हापुरी चप्पल - भारत के कोल्हापुर ज़िले की लोकपरंपरा और हस्तशिल्प का अमूल्य प्रतीक ,अब विश्व फैशन मानचित्र पर अपनी पहचान बना चुकी है। Prada ने मिलान में आयोजित अपने मेन्सवियर शो में इन पारंपरिक चमड़े की चप्पलों को लक्ज़री अपग्रेड के साथ पेश किया। मॉडल्स के पाँवों में इस देसी फुटवियर के ग्लैमरस वर्ज़न ने रैम्प पर चलते ही कैमरों की फ्लैश बटनों को रोशन कर दिया।
चप्पल के स्ट्रैप में स्नीकिंग लेदर फ़िनिश और पारंपरिक टो-लूप के किनारे सुनहरे रिंग का सूक्ष्म जोड़, भारत की कोल्हापुरी विरासत का सम्मान करते हुए आधुनिकता का तड़का भी पेश करता है। इस छोट से डिज़ाइन ट्विस्ट ने दर्शकों को दृश्य स्तर पर चौंका दिया और सोशल मीडिया पर ‘#KohlapuriXPrada’ ट्रेंड बनाने में मदद की।
इस स्टंट ने फैशन नवप्रवर्तकों और पारंपरिक कारीगरों के बीच सेतु का काम किया। जहां एक ओर Prada जैसी ग्लोबल ब्रांड ने भारतीय हस्तशिल्प को ग्लैमरस मंच प्रदान किया, वहीं दूसरी ओर स्थानीय मोची अपनी कला के लिए विश्व पटल पर संभावनाएँ तलाशने लगे। हालांकि कुछ आलोचक इसे सांस्कृतिक सराहना कहकर देख रहे हैं, वहीं कुछ इसे वैश्विक ब्रांडिंग की रणनीति मानकर बहस भी छेड़ रहे हैं।
फैशन विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल टिकाऊ और हस्तनिर्मित उत्पादों की ओर बढ़ते रुझान का संकेत देती है। कोल्हापुरी चप्पल स्वयं में पर्यावरणीय रूप से अनुकूल और दीर्घकालिक वस्त्र विकल्प हैं, जो फैशन उद्योग में बढ़ते वेस्टेज के संकट को भी चुनौती देते हैं।
अंततः Prada के इस साहसिक प्रयोग ने सिद्ध कर दिया है कि देसी शिल्प और अंतरराष्ट्रीय लक्ज़री का मेल न केवल संभव है, बल्कि यह दोनों को एक नयी पहचान भी दे सकता है। कोल्हापुरी चप्पलों की मांग में भारी उछाल आने की संभावना जताई जा रही है ,जो भारतीय विरासत को गर्व से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चमकाएगी।