
नेशनल डेस्क, श्रेयांश पराशर |
"राजनीति में राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति को घसीटना दुर्भाग्यपूर्ण: धनखड़"
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने वर्तमान राजनीतिक माहौल पर चिंता जताते हुए कहा कि राजनीति में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदों को भी घसीटना भारतीय लोकतंत्र और संस्कृति के अनुरूप नहीं है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि देश में इस समय ऐसा राजनीतिक माहौल बन गया है, जिसमें लगातार आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है। उन्होंने कहा कि इसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे गरिमामयी संवैधानिक पदों को भी घसीटा जा रहा है, जो भारतीय लोकतंत्र और हजारों वर्षों पुरानी संस्कृति से मेल नहीं खाता।
जयपुर में राजस्थान प्रगतिशील मंच के कार्यक्रम में पूर्व विधायकों को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष का होना लोकतंत्र की बुनियाद है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि एक-दूसरे को दुश्मन बना लिया जाए। उन्होंने कहा, “विपक्ष विरोधी नहीं होता, वह लोकतंत्र की आवश्यकता है। सत्ता बदलती रहती है लेकिन मूल भावना लोकतंत्र की बनी रहनी चाहिए।”
धनखड़ ने वर्तमान राजनीतिक माहौल को असहनीय बताते हुए कहा कि अब वक्ताओं द्वारा बेलगाम बयानबाज़ी की जा रही है। उन्होंने राज्यों और केंद्र सरकारों के बीच तालमेल की कमी की ओर इशारा करते हुए कहा कि यदि राज्य सरकारें केंद्र के अनुसार काम नहीं करतीं तो आरोप लगाना आसान हो जाता है। धीरे-धीरे यह स्थिति राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को भी घसीटने तक पहुँच चुकी है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कोई व्यक्तिगत चिंता या दर्शन नहीं, बल्कि लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि संवाद, वाद-विवाद और विचारों का आदान-प्रदान लोकतंत्र की आत्मा हैं। अगर कोई अभिव्यक्ति इस स्तर तक पहुँच जाए कि वह दूसरों के विचारों को महत्वहीन समझे, तो वह अपनी ही पहचान खो बैठती है। श्री धनखड़ ने कहा कि वाद-विवाद को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम मानते हुए यह भी ज़रूरी है कि हम दूसरों के मतों को सुने और समझें। यही अभिव्यक्ति को मजबूती देता है और लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखता है।