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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सारंडा जंगल अभयारण्य की ओर, हेमंत सरकार पर भाजपा का हमला

स्टेट डेस्क, प्रीति पायल |

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित सारंडा वन क्षेत्र को लेकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है। यह जंगल एशिया के सबसे विशाल सल वनों में से एक माना जाता है और लगभग 82,000 हेक्टेयर में विस्तृत है।

इस वन क्षेत्र की जैव विविधता में गंभीर गिरावट देखी गई है। वनस्पति की प्रजातियां 300 से घटकर मात्र 87 रह गई हैं, जबकि पक्षियों की संख्या 148 से कम होकर 116 तक सिमट गई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 2010 में 253 हाथी गिने गए थे, लेकिन वर्तमान में उनकी संख्या लगभग शून्य हो चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाई है। 2009-10 में जमशेदपुर पश्चिम विधायक सरयू राय द्वारा दायर जनहित याचिका के बाद, मई 2025 में न्यायालय ने 57,000 हेक्टेयर को अभयारण्य और 13,603 हेक्टेयर को संरक्षण रिजर्व घोषित करने का आदेश दिया था। अदालत ने 8 अक्टूबर 2025 तक इसकी घोषणा के लिए सख्त समयसीमा तय की है।

भाजपा नेता प्रतुल शाहदेव ने इसे हेमंत सरकार की विफलता बताया है। उनका आरोप है कि खनन माफिया के संरक्षण के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने 30 सितंबर को कैबिनेट बैठक में मंत्रियों के समूह को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।

अभयारण्य की घोषणा से इको-टूरिज्म और स्थानीय आदिवासी समुदायों के लिए टिकाऊ आजीविका के अवसर मिल सकते हैं। हालांकि, खनन उद्योग के हितों और स्थानीय रोजगार पर इसके प्रभाव को लेकर चुनौतियां भी हैं। यह मामला झारखंड में विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण की बहस को दर्शाता है।