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हिंदुओं के बिना दुनिया का अस्तित्व नहीं : मोहन भागवत

नेशनल डेस्क, आर्या कुमारी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को भारत को एक ऐसी सभ्यता बताया जो अनंत काल तक बनी रहेगी, और इसके टिके रहने की शक्ति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की संरचना और उसका ‘नेटवर्क’ ऐसा है कि ‘हिंदू समुदाय’ हमेशा अस्तित्व में रहेगा। मणिपुर के तीन दिवसीय दौरे के दूसरे दिन उन्होंने यह बातें लोगों को संबोधित करते हुए कहीं।

अगर हिंदू खत्म हो गए तो

भागवत ने कहा ‘अगर हिंदू खत्म हो गए तो दुनिया खत्म हो जाएगी’। उन्होंने यह भी बताया कि कितने ही देशों का अंत हो गया, लेकिन भारत बिना किसी बड़े नुकसान के आज भी खड़ा है।

उन्होंने कहा, ‘हालात आते-जाते रहते हैं। दुनिया के सभी देशों ने अलग-अलग परिस्थितियों का सामना किया। कुछ सभ्यताएं मिट गईं। युनान (ग्रीस), मिस्र और रोम सबका अस्तित्व समाप्त हो गया।’
RSS प्रमुख ने कहा कि ‘हमने कई देशों का उत्थान-पतन देखा है, लेकिन हम आज भी यहां हैं और आगे भी रहेंगे,’ साथ ही उन्होंने भारत को ‘अमर सभ्यता’ बताया।

पॉलिटिकल मजबूरियों की वजह से

भागवत ने कहा कि अब नेता ‘राजनीतिक मजबूरियों’ के कारण अलग-अलग विचार रख रहे हैं, जबकि पहले सभी के बीच यह ‘समान समझ’ थी कि ‘पूरा भारत हमारा है’। रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘भारतवर्ष सदियों से मौजूद है। महाभारत, रामायण और कालिदास के साहित्य में भी इसका साफ उल्लेख है।’

उन्होंने बताया कि ‘भारतवर्ष’ का भूभाग मणिपुर से लेकर अफगानिस्तान तक बताया गया है। उनके अनुसार, भारत ने समय के साथ राज्यों में बदलाव, अनेक राजाओं का शासन और कभी एक ‘महान सम्राट’ का दौर सब देखा है।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद

RSS प्रमुख ने कहा कि एक समय ऐसा भी था जब हम स्वतंत्र थे और एक समय ऐसा भी आया जब हम पर लगातार आक्रमण हुए, फिर भी भारत एक मजबूत और एकजुट ऐतिहासिक राष्ट्र के तौर पर खड़ा रहा। हालांकि, उन्होंने कहा कि 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद राजनीतिक परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल गईं, जिसके चलते विचारों में भिन्नता उत्पन्न हुई।

भागवत ने शुक्रवार को इंफाल में आदिवासी नेताओं से मुलाकात की और सामाजिक सद्भाव की अपील की। उन्होंने दोहराया कि RSS ‘न तो राजनीति में सक्रिय है और न ही किसी संगठन को रिमोट-कंट्रोल करता है’। साथ ही उन्होंने भारत की ‘साझी सोच’ पर जोर देते हुए कहा कि एकता का अर्थ एकरूपता नहीं होता।