Ad Image
मोतिहारी : बापूधाम रेलवे स्टेशन पर इंटरसिटी ट्रेन से गिरकर यात्री की मौत || अर्जेंटीना पहुंचे PM मोदी, हवाई अड्डे पर भव्य स्वागत || रूस खुद पर लगाये गए पश्चिमी प्रतिबंधों से निपटने में सक्षम : ट्रंप || मसूद अजहर पाकिस्तान में मौजूद नहीं, बिलावल भुट्टो का दावा || PM मोदी ने त्रिनिदाद के पीएम कमला बिसेसर को भेंट की राममंदिर की प्रतिकृति || दिल्ली: आज से RSS के प्रांत प्रचारकों की बैठक, 6 जुलाई को होगी समाप्त || सहरसा: जिला मत्स्य पदाधिकारी को 40 हजार घूस लेते निगरानी ने किया गिरफ्तार || विकासशील देशों को साथ लिए बिना दुनिया की प्रगति नहीं होगी: PM मोदी || संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल कर चुनाव जीतना चाहती भाजपा: पशुपति पारस || मधुबनी: रहिका के अंचलाधिकारी और प्रधान सहायक घूस लेते गिरफ्तार

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

4 राज्यों में सिमटी है भारत की आधी कम वजन जन्म की समस्या: चौंकाने वाला खुलासा

दिल्ली, मुस्कान कुमारी |
भारत में पिछले तीन दशकों में कम वजन से जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है, लेकिन एक ताजा शोध ने यह खुलासा किया है कि चार राज्य—उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल—देश के करीब आधे (47%) कम वजन जन्म मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के डेटा पर आधारित यह अध्ययन ड्यूक और हार्वर्ड विश्वविद्यालयों के साथ-साथ दक्षिण कोरिया के संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। शोध में मातृ और नवजात स्वास्थ्य असमानताओं को दूर करने और स्वास्थ्य सुविधाओं में डेटा संग्रह को बेहतर बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है।

कम वजन जन्म का स्वास्थ्य पर प्रभाव

कम वजन से जन्म (2.5 किलोग्राम से कम) अक्सर माँ के खराब स्वास्थ्य और अपर्याप्त पोषण का संकेत होता है। यह बच्चों में संज्ञानात्मक विकास की समस्याओं और बाद में पुरानी बीमारियों की संवेदनशीलता से जुड़ा है। शोध के मुताबिक, 1993 से 2021 तक कम वजन जन्म की राष्ट्रीय दर 26% से घटकर 18% हो गई, जो स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को दर्शाता है। हालांकि, चार राज्यों में यह समस्या अभी भी गंभीर है।

2019-21 के NFHS डेटा से पता चलता है कि एक साल में करीब 42 लाख बच्चे कम वजन के साथ पैदा हुए, जिनमें से 47% इन चार राज्यों से थे। शोध में यह भी सामने आया कि कम वजन और औसत से छोटे आकार वाले बच्चे उन महिलाओं से पैदा होने की अधिक संभावना रखते हैं, जिनकी औपचारिक शिक्षा कम या नहीं है और जो सबसे गरीब परिवारों से आती हैं।

राज्यों में अंतर

शोध ने राज्यों के बीच कम वजन जन्म की दर में भारी अंतर को उजागर किया है। 1993 में राजस्थान में यह दर सबसे अधिक 48% थी, जबकि 2021 में पंजाब और दिल्ली में 22% दर्ज की गई। मिजोरम और नागालैंड में 1993 और 2021 दोनों में सबसे कम दर देखी गई। राष्ट्रीय औसत में गिरावट आई, जो 1993 और 1999 में 25% से घटकर 2006 में 20% और 2021 में 16% हो गई।

सामाजिक-आर्थिक कारक और स्वास्थ्य सुविधाएँ

शोधकर्ताओं ने बताया कि जिन बच्चों का जन्म के समय वजन नहीं लिया जाता, उनमें कम वजन की समस्या अधिक हो सकती है। तौलने की प्रक्रिया स्वास्थ्य सुविधाओं और अस्पतालों में जन्म से जुड़ी है। कम सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जैसे गरीबी और शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी और कम वजन जन्म से संबंधित है। 1993 में केवल 16% बच्चों (7,992) का वजन लिया गया था, जो 2021 में बढ़कर 90% (2,09,266) हो गया। यह स्वास्थ्य ढांचे में सुधार को दिखाता है, लेकिन गैर-तौले गए बच्चों में कम वजन की उच्च संभावना को भी रेखांकित करता है।

नीतिगत कदमों की जरूरत

शोधकर्ताओं ने मातृ और नवजात स्वास्थ्य असमानताओं को कम करने के लिए निरंतर प्रयासों पर जोर दिया। उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं में डेटा संग्रह को बेहतर बनाने की सिफारिश की, ताकि नीति निर्माताओं को सटीक जानकारी मिल सके। खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में मातृ पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए लक्षित प्रयासों की जरूरत है।

डेटा संग्रह में सुधार

शोध में दर्ज जन्मों की संख्या 1993 में 48,959 से बढ़कर 2021 में 2,32,920 हो गई। जन्म के समय वजन रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया में भी प्रगति हुई है, जो स्वास्थ्य ढांचे के विस्तार को दर्शाता है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि गैर-तौले गए बच्चे अक्सर उन क्षेत्रों से होते हैं, जहां स्वास्थ्य सुविधाएँ सीमित हैं, जिससे कम वजन की दर को कम आंका जा सकता है।

शोध की विधि

शोधकर्ताओं ने NFHS की पांच लहरों (1992-93, 1998-99, 2005-06, 2015-16, और 2019-21) के डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने मल्टीपल इम्प्यूटेशन और हेकमैन सेलेक्शन मॉडल जैसे सांख्यिकीय उपकरणों का उपयोग किया, ताकि डेटा की पूर्णता सुनिश्चित हो और सामाजिक-आर्थिक कारकों के प्रभाव को समझा जा सके।

स्वास्थ्य नीतियों पर असर
यह शोध भारत की स्वास्थ्य नीतियों के लिए अहम है। चार राज्यों में कम वजन जन्म की उच्च दर इन क्षेत्रों में विशेष हस्तक्षेप की मांग करती है। मातृ पोषण कार्यक्रम, प्रसव पूर्व देखभाल, और स्वास्थ्य सुविधाओं तक बेहतर पहुंच इन राज्यों में समस्या को कम कर सकती है। साथ ही, गुणवत्तापूर्ण डेटा संग्रह प्रणालियाँ नीति निर्माताओं को असमानताओं से निपटने में मदद करेंगी।