
रिपोर्ट: ऋषि राज
नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की सार्वजनिक जीवन में सात साल बाद पहली बार सक्रिय वापसी हुई है। उन्हें सरकार द्वारा गठित सर्वदलीय विदेशी प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है, जो आगामी सप्ताह में विभिन्न देशों की यात्रा करेगा। यह दौरा भारत की विदेश नीति और वैश्विक संबंधों को मजबूती देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।
एमजे अकबर, जो एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक भी रह चुके हैं, ने 2018 में “#MeToo” आंदोलन के दौरान लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों के कारण विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। पत्रकार प्रिया रमानी द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद उन्होंने मानहानि का मामला भी दर्ज कराया था, जिसमें अदालत ने प्रिया रमानी को बरी कर दिया था। इसके बाद से वह राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन से लगभग दूर रहे।
क्या है मौजूदा भूमिका?
विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह प्रतिनिधिमंडल विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं का समूह है, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति को साझा करेगा और बहुपक्षीय कूटनीतिक वार्ताओं में भाग लेगा। एमजे अकबर को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना सरकार की ओर से एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है, जो उनके अनुभव और वैश्विक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए लिया गया निर्णय है।
राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम एमजे अकबर के पुनर्वास की शुरुआत हो सकती है। भाजपा सूत्रों के अनुसार, सरकार यह मानती है कि अब समय आ गया है कि अकबर को फिर से सार्वजनिक भूमिका में मौका दिया जाए, विशेषकर अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी विशेषज्ञता को देखते हुए।
विपक्ष का विरोध
हालाँकि, इस फैसले को लेकर विपक्षी दलों और महिला अधिकार संगठनों ने विरोध जताया है। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने बयान जारी कर कहा, "महिलाओं के खिलाफ गंभीर आरोपों का सामना कर चुके व्यक्ति को पुनः जिम्मेदार पद देना सत्ता की संवेदनहीनता दर्शाता है।" सोशल मीडिया पर भी इस निर्णय को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
एमजे अकबर की इस भूमिका को फिलहाल एक कूटनीतिक दौरे तक सीमित माना जा रहा है, लेकिन यदि भविष्य में उन्हें और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ मिलती हैं, तो यह माना जा सकता है कि केंद्र सरकार उनके लिए एक नई राजनीतिक पारी का रास्ता तैयार कर रही है।