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CBSE: ओपन-बुक परीक्षा की नई अवधारणा, रटने की परंपरा पर विराम

नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

सीबीएसई की ओपन-बुक परीक्षा: रटंत संस्कृति से मुक्ति और शिक्षा में बड़ा बदलाव...

सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने कक्षा 9 के लिए ओपन-बुक मूल्यांकन (ओबीए) लागू करने की योजना बनाई है, जिसे शैक्षणिक सत्र 2026-27 से शुरू किया जाएगा। यह कदम भारतीय शिक्षा प्रणाली को रटने की पुरानी परंपरा से आगे ले जाकर छात्रों में आलोचनात्मक सोच, सृजनात्मकता और व्यवहारिक ज्ञान को प्रोत्साहित करने की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव माना जा रहा है। यह सुधार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा स्कूल शिक्षा (एनसीएफएसई) 2023 के अनुरूप है, जिनका उद्देश्य शिक्षा को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुसार ढालना है।

ओपन-बुक परीक्षा की नई अवधारणा

ओपन-बुक परीक्षा (ओबीए) ऐसी प्रणाली है, जिसमें छात्रों को परीक्षा देते समय किताबें, नोट्स या अन्य संदर्भ सामग्री देखने की अनुमति मिलती है। इसका मकसद तथ्यों को याद कराने के बजाय समझ, विश्लेषण और समस्या-समाधान की क्षमता विकसित करना है। सीबीएसई ने इस मॉडल का पायलट प्रोजेक्ट पहले ही सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और अब इसे कक्षा 9 में देशभर के स्कूलों में लागू किया जाएगा। इससे छात्रों को केवल किताबों तक सीमित न रखकर वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में ज्ञान का उपयोग करना सिखाया जाएगा।

रटने की परंपरा पर विराम

भारतीय शिक्षा लंबे समय से रटने की पढ़ाई पर आधारित रही है, जहां छात्रों से केवल तथ्यों को याद करने की अपेक्षा की जाती थी। सीबीएसई का यह निर्णय उस पुरानी सोच को चुनौती देता है। सेठ एम.आर. जयपुरिया स्कूल्स के समूह निदेशक कनक गुप्ता का कहना है, “जीवन स्वयं एक ओपन-बुक है। दुनिया को रटने वाले नहीं, बल्कि समस्याओं का हल खोजने वाले चाहिए।” शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव भारत को आधुनिक शिक्षा प्रणाली की ओर ले जाएगा, जिसमें रचनात्मकता, विश्लेषण और ज्ञान का अनुप्रयोग मुख्य केंद्र में होगा।

शिक्षकों की नई भूमिका और चुनौतियाँ

इस बदलाव से शिक्षकों की जिम्मेदारी भी बदल जाएगी। पारंपरिक व्याख्यान-आधारित पद्धति के बजाय अब उन्हें संवादात्मक, खोज-आधारित और सहभागिता पर आधारित शिक्षण पद्धतियों को अपनाना होगा। प्रश्नपत्र बनाने से लेकर मूल्यांकन तक, हर स्तर पर उन्हें नए तरीकों को सीखना होगा। इसके लिए व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी, ताकि वे इस नई प्रणाली को सफलतापूर्वक लागू कर सकें।

एनईपी और एनसीएफएसई से सामंजस्य

सीबीएसई का यह सुधार एनईपी 2020 और एनसीएफएसई 2023 के उद्देश्यों के अनुरूप है। एनईपी का लक्ष्य शिक्षा को अधिक कौशल-आधारित और लचीला बनाना है। ओपन-बुक परीक्षा उसी सोच को साकार करती है, क्योंकि यह छात्रों को आलोचनात्मक और तार्किक ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करेगी और उन्हें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाएगी।

पढ़ाई और तैयारी में बदलाव

ओपन-बुक परीक्षा लागू होने के बाद कक्षा का वातावरण और परीक्षा की तैयारी का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा। छात्रों को अब केवल तथ्यों को रटने के बजाय, उन्हें समझने, विश्लेषण करने और लागू करने पर ध्यान देना होगा। दूसरी ओर, शिक्षकों को पाठ्यक्रम को इस तरह तैयार करना होगा कि वह छात्रों की जिज्ञासा बढ़ाए और उन्हें गहन सोच के लिए प्रेरित करे।

भविष्य की दिशा

फिलहाल यह प्रणाली केवल कक्षा 9 के लिए शुरू की जा रही है, लेकिन आगे इसे अन्य कक्षाओं तक भी विस्तारित किया जा सकता है। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह सुधार न केवल परीक्षा और शिक्षण पद्धतियों को बदलेगा, बल्कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी और प्रासंगिक भी बनाएगा। इससे भारतीय छात्र नवाचार और समस्या-समाधान की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए बेहतर तैयार हो सकेंगे।

सीबीएसई की ओपन-बुक परीक्षा भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत है। यह पहल छात्रों को रटने की पुरानी पद्धति से मुक्त कर आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और व्यवहारिक ज्ञान की ओर अग्रसर करेगी। हालांकि, इसे सफल बनाने के लिए शिक्षकों, स्कूलों और नीति-निर्माताओं को मिलकर काम करना होगा। यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो यह सुधार भारत की शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों तक ले जाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाएगा।