
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
ईरान-इज़राइल के बीच फिर भड़का हवाई युद्ध, ट्रंप की भूमिका पर संशय बरकरार
ईरान और इज़राइल के बीच गुरुवार को फिर से तीव्र हवाई हमले हुए, जिससे मध्य पूर्व का माहौल और अधिक तनावपूर्ण हो गया है। वहीं, अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस पूरे घटनाक्रम पर अब तक कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाकर दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि क्या अमेरिका इज़राइल के साथ मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले में शामिल होगा या नहीं।
क्या हुआ अब तक?
पिछले एक सप्ताह से इज़राइल ने ईरान पर तेज और घातक हवाई और मिसाइल हमले किए हैं। इन हमलों में:
ईरानी सेना के शीर्ष कमांडरों की मौत हो चुकी है।
ईरान के परमाणु ठिकानों को भारी क्षति पहुंचाई गई है।
अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और कई घायल हुए हैं।
वहीं जवाबी कार्रवाई में ईरान ने इज़राइल के विभिन्न शहरों पर मिसाइल हमले किए हैं, जिनमें अब तक दो दर्जन से अधिक इज़राइली नागरिकों की मौत हो चुकी है।
इज़राइल के हमले – रणनीतिक आक्रामकता
इज़राइल का यह हमला सुनियोजित और बेहद उग्र रहा। लक्ष्य थे:
नतांज और फोर्डो जैसे परमाणु संयंत्र
तेहरान में स्थित मिलिट्री ऑपरेशंस हेडक्वार्टर
रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के ठिकाने
इज़राइली वायुसेना ने अमेरिकी तकनीक का इस्तेमाल कर बेहद कम ऊंचाई से उड़ते हुए ईरान के रडार सिस्टम को चकमा दिया और सटीक निशाने पर हमले किए।
ईरानी जवाबी हमला
ईरान ने भी पीछे हटने का नाम नहीं लिया और उसने:
तेल अवीव, हाइफा, और बेर्शेबा जैसे शहरों को निशाना बनाया।
कई ड्रोन और क्रूज़ मिसाइलों का प्रयोग कर सिविल और मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाया।
साइबर हमलों के जरिए इज़राइली बैंकिंग और संचार नेटवर्क को अस्थायी रूप से बाधित किया।
अमेरिका की भूमिका पर असमंजस
इन दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात में दुनिया की नजरें अब अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप पर टिकी हैं। ट्रंप, जो एक बार फिर राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में हैं, ने अब तक कोई स्पष्ट सैन्य हस्तक्षेप की घोषणा नहीं की है, लेकिन उन्होंने यह कहा:
"हम अपने साझेदारों के साथ खड़े हैं, लेकिन हम कोई भी निर्णय जल्दबाज़ी में नहीं लेंगे।"
इस बयान से यह संकेत मिला है कि अमेरिका अभी राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव की रणनीति अपना रहा है, न कि सीधा सैन्य हस्तक्षेप।
वैश्विक चिंता और प्रतिक्रियाएं
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने तत्काल युद्धविराम की अपील की है।
रूस और चीन ने अमेरिका को चेताया है कि वह मध्य पूर्व को "नया युद्ध का मैदान" न बनाए।
यूरोपीय संघ ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।
ईरान और इज़राइल के बीच जारी यह संघर्ष अब केवल द्विपक्षीय लड़ाई नहीं रहा, बल्कि यह विश्व राजनीति और शक्ति संतुलन का मामला बन गया है। डोनाल्ड ट्रंप की चुप्पी और संभावित अमेरिकी हस्तक्षेप की अटकलें इस पूरे घटनाक्रम को और जटिल बना रही हैं।
अगर युद्ध और बढ़ा, तो इसका असर तेल की कीमतों, वैश्विक व्यापार, और शांति प्रयासों पर गंभीर रूप से पड़ सकता है। आने वाले दिन निर्णायक साबित होंगे — क्या यह जंग रुक सकेगी या दुनिया एक और बड़े युद्ध की ओर बढ़ रही है?