
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
इजरायल और ईरान के बीच जारी सैन्य संघर्ष अपने आठवें दिन में प्रवेश कर चुका है, जिसने मध्य पूर्व में तनाव को अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचा दिया है। लगातार हवाई हमले और मिसाइल हमलों ने क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल दिया है, और इस युद्ध के वैश्विक प्रभावों ने भारत सहित कई देशों को सतर्क कर दिया है।
संघर्ष का घटनाक्रम: तीव्र होती जंग
13 जून 2025 को इजरायल ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमले शुरू किए। इजरायल का दावा है कि इन हमलों का मकसद ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकना है। जवाब में, ईरान ने "ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3" शुरू किया, जिसके तहत इजरायल के प्रमुख शहरों, जैसे तेल अवीव और बीरशेबा, पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए गए।
ईरान ने तेल अवीव के वित्तीय केंद्रों और बीरशेबा के सोरोका अस्पताल को निशाना बनाया, जिससे कई नागरिक हताहत हुए और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा। दूसरी ओर, इजरायल ने तेहरान, इस्फहान और फोर्डो में ईरान के परमाणु और सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले तेज कर दिए। दोनों देशों के नेताओं के तीखे बयानों ने स्थिति को और जटिल किया है। इजरायली प्रधानमंत्री ने ईरान से "पूरी कीमत" वसूलने की चेतावनी दी, जबकि ईरान के सर्वोच्च नेता ने बाहरी हस्तक्षेप के "गंभीर परिणामों" की बात कही।
भारत से शांति की अपील
ईरान ने भारत से इस संघर्ष में कूटनीतिक हस्तक्षेप की मांग की है। नई दिल्ली में एक प्रेस वार्ता में ईरान के उप राजदूत ने भारत से इजरायल की कार्रवाइयों की निंदा करने और युद्ध को रोकने में मध्यस्थता करने की अपील की। उन्होंने भारत की शांति समर्थक छवि पर जोर देते हुए कहा कि भारत की भूमिका इस संकट को हल करने में महत्वपूर्ण हो सकती है। ईरान ने यह भी अपेक्षा जताई कि भारत संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर मध्य पूर्व में स्थिरता के लिए अपनी आवाज उठाए।
भारत का रुख: संतुलन और सतर्कता
भारत ने अब तक इस संघर्ष में किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन या विरोध नहीं किया है। विदेश मंत्रालय ने सभी पक्षों से संयम बरतने और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की अपील की है। भारत का यह तटस्थ रुख उसके कूटनीतिक संतुलन को दर्शाता है, क्योंकि एक ओर इजरायल के साथ उसका रक्षा और तकनीकी सहयोग मजबूत है, तो दूसरी ओर ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट्स हैं।
भारत ने अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए त्वरित कदम उठाए हैं। ईरान और इजरायल में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए "ऑपरेशन सिंधु" शुरू किया गया है, जिसमें जॉर्डन और मिस्र के रास्तों का उपयोग किया जा रहा है।
वैश्विक और आर्थिक प्रभाव
इस युद्ध ने वैश्विक तेल आपूर्ति को प्रभावित किया है, जिसके चलते तेल की कीमतों में भारी उछाल देखा गया है। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, इस उछाल से आर्थिक दबाव का सामना कर सकता है। घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई है, जबकि सोना और सरकारी बॉन्ड्स जैसे सुरक्षित निवेश विकल्पों की मांग बढ़ी है। लाल सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण शिपिंग मार्गों पर खतरे ने भारत के निर्यात को भी प्रभावित करने की आशंका बढ़ा दी है।
मानवीय संकट
युद्ध ने दोनों देशों में मानवीय संकट को गहरा किया है। इजरायल में मिसाइल हमलों के कारण हजारों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं, जबकि ईरान में अस्पतालों और आवासीय क्षेत्रों पर हमलों से सैकड़ों परिवार प्रभावित हुए हैं। दोनों देशों में स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक सेवाएं ठप हो चुकी हैं, जिससे आम नागरिकों का जीवन संकट में है।
आगे की राह
मध्य पूर्व में बढ़ता यह तनाव न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर भी दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। भारत, अपनी तटस्थता और कूटनीतिक प्रभाव के साथ, इस संकट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में है। सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि भारत इस जटिल परिस्थिति में अपने हितों की रक्षा कैसे करता है।