
विदेश डेस्क, नीतीश कुमार |
Strait of Hormuz संकट: ईरान-इजरायल युद्ध से भारत की तेल आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर खतरा
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 85% से अधिक हिस्सा आयात करता है, इसलिए होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) उसके लिए अत्यंत रणनीतिक महत्व रखता है। इस क्षेत्र में किसी भी तरह की अशांति से तेल की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है, जिसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
इन दिनों ईरान और इजरायल के बीच सैन्य तनाव तेज़ी से बढ़ रहा है। पिछले लगभग एक सप्ताह में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर कई मिसाइल हमले किए हैं, जिनमें 250 से 300 लोगों के मारे जाने की खबरें हैं। इस संघर्ष के चलते वैश्विक स्तर पर शक्तिशाली देशों के दो खेमे बन गए हैं—अमेरिका जहां इजरायल का समर्थन कर रहा है, वहीं रूस जैसे देश ईरान के साथ खड़े हैं। भारत फिलहाल तटस्थ रुख अपनाए हुए है, क्योंकि दोनों ही देशों के साथ उसके महत्वपूर्ण कूटनीतिक और आर्थिक संबंध हैं। होर्मुज जलडमरूमध्य इसका प्रमुख उदाहरण है।
होर्मुज जलडमरूमध्य, जो ईरान के उत्तर में और ओमान तथा संयुक्त अरब अमीरात के दक्षिण में स्थित है, फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और फिर अरब सागर से जोड़ता है। इसकी कुल चौड़ाई लगभग 34 किलोमीटर है, लेकिन जहाजों के संचालन योग्य हिस्सा बेहद संकरा और संवेदनशील है।
इंडिया टुडे की पत्रकार शिवानी शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार, यह जलडमरूमध्य दुनिया की लगभग 20% तेल आपूर्ति का मार्ग है। रोज़ाना करीब 1.7 करोड़ बैरल तेल और गैस इस रास्ते से गुजरते हैं, जिनमें से अधिकतर की मंज़िल एशियाई देश होते हैं।
चूंकि भारत अपने कच्चे तेल का अधिकांश हिस्सा आयात करता है, इसलिए इस जलमार्ग में किसी भी प्रकार का व्यवधान उसके लिए गंभीर संकट खड़ा कर सकता है। तेल की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी से भारतीय बाज़ार और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।
इजरायल-ईरान तनाव के चलते यह जलडमरूमध्य खतरे में पड़ गया है। ईरान पहले भी इसे बंद करने की चेतावनी दे चुका है। यदि वास्तव में ऐसा होता है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, युद्ध जैसी स्थिति के कारण वाणिज्यिक जहाजों का बीमा प्रीमियम बढ़ सकता है, जिससे शिपिंग की लागत और अनिश्चितता दोनों में वृद्धि होगी।
भारत पर इसका प्रभाव केवल ऊर्जा आपूर्ति तक सीमित नहीं रहेगा। चाबहार जैसे भारत-ईरान के संयुक्त बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर भी असर पड़ सकता है। भारत ने दोनों देशों से शांति बनाए रखने और बातचीत के ज़रिए समाधान निकालने की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यह युद्ध का समय नहीं है और भारत किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करता।
आर्थिक प्रभाव: तेल, मुद्रा और बाजार;
अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसका व्यापक असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि होती है, तो भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी का 0.55% तक बढ़ सकता है, जबकि महंगाई दर (CPI) में लगभग 0.3% की वृद्धि हो सकती है।
इसके अलावा शेयर बाजार और रुपये पर भी दबाव पड़ेगा। तेल की ऊंची कीमतें एयरलाइंस, पेंट और टायर कंपनियों के मार्जिन पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं, वहीं तेल कंपनियों और रिफाइनिंग उद्योग को इससे लाभ मिल सकता है।