
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा धन में 2024 में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) की ताजा वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 की तुलना में 2024 में भारतीयों का जमा धन तीन गुना से अधिक बढ़कर 3.5 अरब स्विस फ्रैंक (लगभग 37,600 करोड़ रुपये) हो गया। यह राशि 2021 के बाद का सबसे उच्च स्तर है, जब यह 3.83 अरब स्विस फ्रैंक थी। इस वृद्धि का प्रमुख कारण स्थानीय शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से रखे गए धन में भारी इजाफा है।
2023 में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि चार साल के निम्नतम स्तर 1.04 अरब स्विस फ्रैंक (लगभग 9,771 करोड़ रुपये) पर पहुंच गई थी, जो 70 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्शाती थी। इस पृष्ठभूमि में, 2024 का यह उछाल आर्थिक और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है। स्विस बैंकों में भारतीय धन का मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील रहा है, विशेष रूप से कथित काले धन के संदर्भ में। हालांकि, स्विस नेशनल बैंक ने स्पष्ट किया है कि ये आंकड़े केवल बैंकों से मिली आधिकारिक जानकारी पर आधारित हैं और इनमें काले धन का कोई संकेत नहीं है।
2024 के आंकड़ों के अनुसार, कुल जमा राशि का वितरण इस प्रकार है: ग्राहक जमा खातों में 34.6 करोड़ स्विस फ्रैंक (लगभग 3,675 करोड़ रुपये), अन्य बैंकों के माध्यम से 3.02 अरब स्विस फ्रैंक (लगभग 32,214 करोड़ रुपये), ट्रस्टों के जरिए 4.1 करोड़ स्विस फ्रैंक (लगभग 437 करोड़ रुपये), और बॉन्ड, प्रतिभूतियों व अन्य वित्तीय साधनों में 13.5 करोड़ स्विस फ्रैंक (लगभग 1,439 करोड़ रुपये) शामिल हैं। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि कुल जमा राशि का करीब 86 प्रतिशत हिस्सा अन्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों के माध्यम से आया है, जबकि व्यक्तिगत ग्राहक खातों का योगदान केवल 10 प्रतिशत से भी कम है।
स्विस नेशनल बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय ग्राहकों के व्यक्तिगत खातों में जमा राशि में केवल 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो 34.6 करोड़ स्विस फ्रैंक तक पहुंची। यह कुल राशि का मात्र दसवां हिस्सा है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि व्यक्तिगत बचत की तुलना में संस्थागत निवेश और वित्तीय लेन-देन में अधिक वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वृद्धि वैश्विक निवेश रणनीतियों, व्यापारिक लेन-देन और वित्तीय संस्थानों के माध्यम से धन के प्रवाह को दर्शाती है।
स्विट्जरलैंड ने बार-बार दोहराया है कि वह इन जमा राशियों को काला धन नहीं मानता और कर चोरी के खिलाफ भारत के प्रयासों का समर्थन करता है। स्विस नेशनल बैंक ने यह भी स्पष्ट किया कि इन आंकड़ों में वह धन शामिल नहीं है, जो भारतीयों, प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) या अन्य व्यक्तियों ने तीसरे देश की संस्थाओं के नाम पर जमा किया हो। भारत और स्विट्जरलैंड के बीच 2018 से लागू स्वचालित कर डेटा आदान-प्रदान (ऑटोमैटिक टैक्स डेटा एक्सचेंज) व्यवस्था के तहत भारतीयों के स्विस खातों की जानकारी नियमित रूप से भारतीय कर अधिकारियों को दी जाती है। यह व्यवस्था कर चोरी को रोकने और वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इसके बावजूद, 2024 में जमा राशि में इस उछाल ने कई सवाल खड़े किए हैं। विशेष रूप से, धन के स्रोत और इसके उपयोग को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की वैश्विक वित्तीय प्रणाली में बढ़ती भागीदारी को दर्शाती है। वहीं, कुछ लोग इसे काले धन के पुन: प्रवाह के संभावित संकेत के रूप में देख रहे हैं, हालांकि स्विस अधिकारियों ने इस तरह के दावों को खारिज किया है।
स्विस बैंकों में विदेशी जमा के मामले में भारत की स्थिति में भी सुधार देखा गया है। 2023 में भारत 67वें स्थान पर था, जो 2024 में बढ़कर 48वां स्थान हो गया। तुलनात्मक रूप से, पड़ोसी देशों में भी जमा राशि में बदलाव देखा गया। पाकिस्तान की जमा राशि 28.6 करोड़ स्विस फ्रैंक से घटकर 27.2 करोड़ स्विस फ्रैंक हो गई, जबकि बांग्लादेश की जमा राशि 1.8 करोड़ से बढ़कर 58.9 करोड़ स्विस फ्रैंक हो गई। यह दर्शाता है कि क्षेत्रीय स्तर पर भी वित्तीय प्रवाह में उतार-चढ़ाव हो रहा है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो स्विस बैंकों में भारतीय जमा राशि में समय-समय पर उतार-चढ़ाव देखा गया है। 2006 में यह राशि रिकॉर्ड 6.5 अरब स्विस फ्रैंक थी, जो उस समय का उच्चतम स्तर था। इसके बाद, जमा राशि में कमी देखी गई, हालांकि 2011, 2013, 2017, 2020, 2021, 2022 और अब 2024 में कुछ उछाल देखे गए। 2021 में यह राशि 3.83 अरब स्विस फ्रैंक थी, जो 14 साल का उच्चतम स्तर था।
2024 की यह वृद्धि कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारतीयों की वैश्विक वित्तीय प्रणाली में बढ़ती भागीदारी को दर्शाती है, बल्कि भारत और स्विट्जरलैंड के बीच वित्तीय सहयोग की मजबूती को भी उजागर करती है। स्वचालित कर डेटा आदान-प्रदान व्यवस्था के लागू होने के बाद से, स्विस बैंकों में भारतीय खातों की निगरानी में पारदर्शिता बढ़ी है। फिर भी, इस उछाल ने धन के स्रोत और इसके उपयोग को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस वृद्धि के पीछे कई कारक हो सकते हैं। वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों और निवेशकों द्वारा किए जा रहे बड़े लेन-देन, विदेशी निवेश रणनीतियां, और वित्तीय संस्थानों के माध्यम से धन का प्रवाह इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, अन्य बैंकों के माध्यम से जमा राशि में 3.02 अरब स्विस फ्रैंक की वृद्धि इस बात का संकेत है कि बड़े पैमाने पर संस्थागत निवेश हो रहा है।
इसके अलावा, भारत की अर्थव्यवस्था में हाल के वर्षों में देखी गई मजबूती और वैश्विक व्यापार में बढ़ती भागीदारी भी इस वृद्धि में योगदान दे सकती है। भारतीय कंपनियां और उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्ति (एचएनआई) वैश्विक स्तर पर अपने निवेश पोर्टफोलियो को विविधता प्रदान करने के लिए स्विट्जरलैंड जैसे वित्तीय केंद्रों का उपयोग कर रहे हैं।
स्विस बैंकों में भारतीय जमा राशि का यह आंकड़ा भारत सरकार और नियामक संस्थाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह न केवल वित्तीय पारदर्शिता के दृष्टिकोण से, बल्कि कर नीतियों और वैश्विक वित्तीय प्रवाह की निगरानी के लिए भी प्रासंगिक है। भारत सरकार ने काले धन के खिलाफ अपनी लड़ाई को और मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें स्विट्जरलैंड के साथ सहयोग शामिल है।
वर्तमान में, स्विस नेशनल बैंक की 2024 की रिपोर्ट नवीनतम उपलब्ध डेटा है, क्योंकि यह अपनी वार्षिक रिपोर्ट हर साल जून में जारी करता है। 2025 के लिए कोई नया डेटा अभी उपलब्ध नहीं है। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह प्रवृत्ति जारी रहती है और भारत-स्विट्जरलैंड के बीच वित्तीय सहयोग किस दिशा में बढ़ता है।