विदेश डेस्क- ऋषि राज
वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विदेश नीति में बड़ा और निर्णायक कदम उठाते हुए 29 देशों से अमेरिकी राजदूतों को वापस बुलाने का निर्देश दिया है। ये सभी राजदूत पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल के दौरान नियुक्त किए गए थे और ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी अपने पदों पर बने हुए थे। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह फैसला “अमेरिका फर्स्ट” नीति को मजबूती से लागू करने और विदेश नीति में व्यापक बदलाव के तहत लिया गया है।
विदेश विभाग के अधिकारियों के अनुसार, पिछले सप्ताह कम से कम 29 देशों में तैनात अमेरिकी राजदूतों को यह सूचना दे दी गई है कि जनवरी 2026 में उनकी सेवाएं समाप्त हो जाएंगी। बुधवार से संबंधित राजनयिकों को वॉशिंगटन की ओर से औपचारिक नोटिस मिलना शुरू हो गया था। हालांकि, प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि इन राजदूतों की विदेश सेवा की नौकरियां समाप्त नहीं होंगी, बल्कि वे चाहें तो वाशिंगटन लौटकर अन्य जिम्मेदारियां संभाल सकते हैं।
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में ऐसे राजनयिकों की जरूरत है, जो राष्ट्रपति की नीतियों और प्राथमिकताओं के अनुरूप काम करें। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विदेश नीति में बदलाव केवल घोषणाओं से नहीं, बल्कि राजनयिक तंत्र में भरोसेमंद और अनुकूल नेतृत्व से संभव है। इसी उद्देश्य से अनुभवी लेकिन पिछली सरकार के दौरान नियुक्त राजदूतों को बदला जा रहा है।
हालांकि, स्टेट डिपार्टमेंट ने इसे एक “सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया” बताया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसका असर अमेरिका के कई रणनीतिक साझेदार देशों के साथ संबंधों पर पड़ सकता है। यह कदम ट्रंप के उस रुख को भी दर्शाता है, जिसमें वे सत्ता में आते ही प्रशासनिक ढांचे में बड़े पैमाने पर फेरबदल करते हैं।
सबसे अधिक प्रभाव अफ्रीकी देशों पर पड़ा है। जिन 13 अफ्रीकी देशों से राजदूतों को वापस बुलाया जा रहा है, उनमें बुरुंडी, कैमरून, केप वर्डे, गैबॉन, आइवरी कोस्ट, मेडागास्कर, मॉरीशस, नाइजर, नाइजीरिया, रवांडा, सेनेगल, सोमालिया और युगांडा शामिल हैं।
एशिया क्षेत्र में छह देशों—फिजी, लाओस, मार्शल आइलैंड्स, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस और वियतनाम—में तैनात अमेरिकी राजदूतों को भी बदला जा रहा है। यूरोप में आर्मेनिया, नॉर्थ मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो और स्लोवाकिया इस सूची में हैं।
इसके अलावा, मध्य पूर्व के दो देश—अल्जीरिया और मिस्र, दक्षिण और मध्य एशिया के दो देश—नेपाल और श्रीलंका, तथा पश्चिमी गोलार्ध के दो देश—ग्वाटेमाला और सूरीनाम—भी इस फैसले से प्रभावित होंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला आने वाले महीनों में अमेरिका की कूटनीतिक दिशा और वैश्विक संबंधों को नए सिरे से आकार दे सकता है।







