
स्टेट डेस्क, वेरोनिका राय |
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले कांग्रेस पार्टी के भीतर टिकट बंटवारे को लेकर जबरदस्त घमासान शुरू हो गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने “पैराशूट उम्मीदवारों” को टिकट देने पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि जमीनी स्तर पर वर्षों से मेहनत करने वाले पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर अचानक से ऊपर से थोपे गए बाहरी चेहरों को तरजीह दी जा रही है। इससे संगठन में असंतोष और आक्रोश दोनों बढ़ता जा रहा है।
पारदर्शिता की मांग और गुटबाजी का आरोप
कई जिलों से खबरें सामने आ रही हैं कि स्थानीय कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जिन लोगों ने पिछले दस–पंद्रह सालों में पार्टी का झंडा तक नहीं उठाया, उन्हें अब टिकट देने का वादा किया जा रहा है, जबकि जो कार्यकर्ता पार्टी के मुश्किल दौर में उसके साथ खड़े रहे, उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम (पटना) में इन दिनों टिकट के दावेदारों और उनके समर्थकों का जमावड़ा लगा हुआ है। कई नेता और कार्यकर्ता अपने क्षेत्र की स्थिति बताने और पैराशूट उम्मीदवारों के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज कराने पहुंचे हैं। सूत्रों के मुताबिक, रीगा, सिकंदरा, बाढ़, और कई अन्य विधानसभा क्षेत्रों में टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी चरम पर है।
स्थानीय समीकरणों की अनदेखी से बढ़ा गुस्सा
कार्यकर्ताओं का कहना है कि दिल्ली या राज्य स्तर के बड़े नेता बिहार के स्थानीय हालात, जातीय समीकरण और क्षेत्रीय राजनीति को समझे बिना उम्मीदवारों के नाम तय कर रहे हैं। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि कई नाम “सिफारिश” और “प्रभावशाली संपर्कों” के आधार पर सूची में शामिल किए गए हैं।
एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा, “जिन लोगों ने संगठन के लिए दिन-रात काम किया, वे टिकट की दौड़ में पीछे कर दिए गए हैं। पार्टी को मजबूत करने वालों को हाशिए पर डालकर बाहरी नेताओं को मौका देना नाइंसाफी है।”
महागठबंधन में घटती सीटें और बढ़ती अंदरूनी लड़ाई
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन में कांग्रेस की सीटों की संख्या इस बार सीमित मानी जा रही है। पिछले 2020 के चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार चर्चाएं हैं कि उसे 15 से 20 सीटें कम मिल सकती हैं। इस वजह से टिकट की होड़ और भी तेज हो गई है।
पार्टी के अंदर पुराने और नए नेताओं के बीच खींचतान बढ़ गई है। कई पुराने दावेदारों को इस बार टिकट से वंचित किए जाने की संभावना जताई जा रही है। इससे असंतोष का माहौल और गहरा गया है। कई जिलों में कार्यकर्ताओं ने यहां तक धमकी दी है कि अगर टिकट वितरण में निष्पक्षता नहीं बरती गई तो वे खुलकर पार्टी विरोधी अभियान चलाएंगे।
राहुल-प्रियंका को लिखे गए पत्र
असंतोष बढ़ने के बाद कई कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस हाईकमान तक अपनी बात पहुंचानी शुरू कर दी है। कुछ ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को पत्र लिखकर टिकट वितरण में पारदर्शिता बनाए रखने की मांग की है। उन्होंने आग्रह किया है कि मेहनती और जमीनी कार्यकर्ताओं को ही प्राथमिकता दी जाए, ताकि पार्टी की साख बनी रहे।
विश्लेषकों की राय: असंतोष से कमजोर हो सकती है पार्टी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस ने समय रहते यह असंतोष नहीं सुलझाया, तो इसका सीधा असर चुनावी प्रदर्शन पर पड़ेगा। पहले से ही सीमित सीटों पर लड़ने जा रही कांग्रेस के लिए एकजुटता बेहद जरूरी है। अगर जमीनी कार्यकर्ता नाराज़ हुए तो इसका फायदा विपक्षी दलों को मिल सकता है।
विश्लेषकों के अनुसार, बिहार जैसे राज्य में स्थानीय समीकरण, जातीय संतुलन और संगठन की मजबूती ही जीत का आधार होते हैं। ऐसे में पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट देना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
बिहार कांग्रेस इस समय दोहरी चुनौती से जूझ रही है; एक ओर महागठबंधन में अपनी सीटें बचाने की कोशिश, और दूसरी ओर अपने ही कार्यकर्ताओं का बढ़ता असंतोष। अगर पार्टी नेतृत्व जल्द स्थिति को संभाल नहीं पाया, तो यह टिकट विवाद चुनाव से पहले ही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकता है।