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दिल्ली हाईकोर्ट: पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन रोकने का निर्देश

नेशनल डेस्क, वेरोनिका राय ।

दिल्ली हाईकोर्ट ने योगगुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को बड़ा झटका देते हुए डाबर इंडिया लिमिटेड को अंतरिम राहत दी है। यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें डाबर ने पतंजलि पर उसके मशहूर उत्पाद डाबर च्यवनप्राश को बदनाम करने के गंभीर आरोप लगाए थे।

कोर्ट का आदेश

न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा की एकल पीठ ने मंगलवार को पतंजलि को निर्देश दिया कि वह डाबर के च्यवनप्राश उत्पाद के खिलाफ कोई भ्रामक या नकारात्मक विज्ञापन न प्रसारित करे। अदालत ने माना कि पहली दृष्टि में डाबर की शिकायतें गंभीर हैं और ब्रांड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की आशंका है। कोर्ट ने पतंजलि को ऐसे सभी प्रचारों से दूर रहने का आदेश दिया जो उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकते हैं या डाबर के उत्पाद की छवि खराब कर सकते हैं।

डाबर के आरोप

डाबर इंडिया लिमिटेड ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि पतंजलि अपने विज्ञापनों के माध्यम से जानबूझकर डाबर च्यवनप्राश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रही है। डाबर का कहना है कि पतंजलि के विज्ञापन में दिखाया गया कि डाबर का च्यवनप्राश "साधारण" है और उसमें आयुर्वेदिक गुणवत्ता की कमी है। इसके विपरीत पतंजलि ने अपने उत्पाद को 'असली आयुर्वेदिक' और '51 से अधिक जड़ी-बूटियों' से युक्त बताकर प्रचारित किया, जबकि सच्चाई यह है कि पतंजलि के उत्पाद में केवल 47 जड़ी-बूटियां हैं।

डाबर ने यह भी दावा किया कि पतंजलि के उत्पाद की जांच में उसमें पारा (Mercury) जैसे हानिकारक तत्व पाए गए हैं, जो खासतौर पर बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं। इस आरोप के आधार पर डाबर ने हाईकोर्ट से मांग की कि ऐसे भ्रामक और असत्यापित दावों पर रोक लगाई जाए।

दिसंबर में जारी हुआ था समन

डाबर के वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने कोर्ट में दलील दी कि पहले भी दिसंबर 2024 में कोर्ट की ओर से समन जारी किया गया था, लेकिन इसके बावजूद पतंजलि ने सिर्फ एक हफ्ते के भीतर 6,182 भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की मार्केटिंग रणनीति प्रतिस्पर्धात्मक सीमा को पार कर जाती है और व्यापारिक नैतिकता के विरुद्ध है।

उन्होंने कहा, "पतंजलि यह जताने की कोशिश कर रही है कि वही एकमात्र असली आयुर्वेदिक च्यवनप्राश बनाता है, जबकि डाबर जैसे 100 साल पुराने प्रतिष्ठित ब्रांड को सामान्य और कमतर बताने की कोशिश की जा रही है।" डाबर ने यह भी जानकारी दी कि भारतीय बाजार में उसके च्यवनप्राश की हिस्सेदारी 61.6% है, जो उसके उत्पाद की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता को दर्शाता है।

पतंजलि की सफाई

वहीं पतंजलि की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता ने डाबर के सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कोर्ट में कहा कि पतंजलि का च्यवनप्राश पूरी तरह आयुर्वेदिक मानकों के अनुरूप है और उसमें किसी भी प्रकार का हानिकारक तत्व नहीं पाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि पतंजलि के दावों को भ्रामक कहना गलत है क्योंकि वे पारंपरिक औषधीय ज्ञान और प्रमाणिक रचनाओं पर आधारित हैं।

अगली सुनवाई 14 जुलाई को

अदालत ने डाबर की याचिका स्वीकार करते हुए पतंजलि को निर्देशित किया कि वह अगली सुनवाई तक कोई भी ऐसा विज्ञापन प्रकाशित या प्रसारित न करे, जिससे डाबर के उत्पाद की छवि को नुकसान पहुंचे। इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 जुलाई 2025 तय की गई है।

यह मामला भारतीय विज्ञापन और प्रतिस्पर्धा कानून के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। कोर्ट का यह अंतरिम आदेश न केवल डाबर के ब्रांड की सुरक्षा करता है, बल्कि पूरे बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम है। साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर अदालत सख्त रुख अपना सकती है।