
स्टेट डेस्क, आर्या कुमारी |
बिहार के सारण जिले में सियासी उलटफेर का नया अध्याय जुड़ गया है। परसा के राजद विधायक छोटेलाल राय ने जदयू का हाथ थाम लिया है, जबकि बनियापुर के राजद विधायक केदारनाथ सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। दोनों नेताओं को नई पार्टियों ने तत्काल टिकट देकर अपने खेमे में स्वागत किया है। इस कदम ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है, जहाँ नेता अपने सियासी भविष्य को देखते हुए अक्सर पाला बदलते हैं।
बिहार की सियासत में रंग बदलने का सिलसिला फिर तेज़ हो गया है। चुनाव से ठीक पहले परसा और बनियापुर के दो मौजूदा राजद विधायकों की चाल ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। परसा के छोटेलाल राय ने जदयू का दामन थाम लिया, वहीं बनियापुर के केदारनाथ सिंह भाजपा के पाले में जा पहुंचे। दिलचस्प बात यह है कि दोनों को उनके नए दलों ने न सिर्फ अपनाया, बल्कि तुरंत चुनावी निशान भी सौंप दिया। यह दलबदल सारण के लिए नया नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला था, जब अमनौर सीट के पूर्व जदयू विधायक कृष्ण कुमार सिंह मंटू को एक बड़े नेता ने रातोंरात भाजपा में शामिल करवाकर टिकट दिला दिया था। वे चुनाव जीते और फिर विधानसभा पहुंचे।
छोटेलाल राय ने बदला राजनीतिक गियर
परसा के विधायक छोटेलाल राय की सियासी यात्रा जदयू से शुरू हुई थी। बीच में लोजपा और फिर राजद का रुख किया, और तीसरी बार विधायक बने। अब समय बदला तो उन्होंने भी अपना गियर बदल लिया। सुबह राजद में थे, शाम को जदयू में गए, रात में फिर राजद लौटे और अगली सुबह दोबारा जदयू में शामिल हो गए।
छोटेलाल राय पहली बार अक्टूबर 2005 में जदयू से विधायक बने, फिर 2010 में भी जदयू टिकट पर जीते। 2015 में लोजपा से चुनाव लड़ा, पर हार गए। 2020 में राजद से जीत हासिल की। इस बार उनकी टक्कर पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पोती और राजद प्रत्याशी करिश्मा राय से है।
केदारनाथ सिंह ने थामा ‘कमल’
बनियापुर के विधायक केदारनाथ सिंह की शुरुआत भी जदयू से हुई थी। 2005 में मशरक सीट से वे जदयू के विधायक बने। सीट विलोपित होने के बाद वे राजद में आए और 2010, 2015 व 2020 में लगातार तीन बार बनियापुर से राजद के विधायक बने। हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव से ही उन्होंने राजद से दूरी बना ली थी। इस बार जब गठबंधन में बनियापुर भाजपा के खाते में आई, तो उन्होंने रातोंरात पार्टी बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया और टिकट भी पा लिया। अब उनका मुकाबला पूर्व विधायक स्व. अशोक सिंह की पत्नी व राजद उम्मीदवार चांदनी देवी से है।
बदलते समीकरणों में सब जायज
राजनीति में ऐसे पल बार-बार आते हैं, जब नेता अपने भविष्य को ध्यान में रखकर खेमे बदलते हैं। विचारधारा से अधिक महत्व पद और अवसर को दिया जाता है। मगर इस बार खास बात यह है कि एक ही पार्टी के दो विधायक एक ही रात दो अलग-अलग दलों में शामिल हुए और दोनों को फौरन टिकट भी मिल गया, ऐसा नजारा कम ही देखने को मिलता है।
जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, बिहार की सियासत का खेल और दिलचस्प हो गया है। नेताओं ने अपनी-अपनी नई जमीन तलाश ली है। यह दलबदल फिर साबित करता है कि बिहार की राजनीति में न विचार स्थायी हैं, न रिश्ते और न दल। सब कुछ बदलता है; बस इस बार बदलने का अंदाज़ कुछ अलग है।
परसा और बनियापुर के मतदाताओं के लिए यह चुनाव अब और रोमांचक बन गया है। सारण ही नहीं, पूरे बिहार की निगाहें टिकी हैं कि इस रंग बदलती सियासत में कौन-सा चेहरा इस बार असली चमक दिखाएगा।