
स्टेट डेस्क, वेरोनिका राय |
छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में 35 आदिवासी परिवारों की 'घर वापसी', धर्मांतरण पर उठे गंभीर सवाल
छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में धर्मांतरण को लेकर एक बार फिर से बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। यहां 35 आदिवासी परिवारों ने ईसाई धर्म छोड़कर सनातन हिंदू धर्म में ‘घर वापसी’ की है। यह आयोजन झोबा आश्रम में हुआ, जिसमें अखिल भारतीय घर वापसी संगठन के प्रमुख और बीजेपी नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने स्वयं उनके पैर धोकर सम्मानपूर्वक धर्म में पुनः प्रवेश कराया।
प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने इसे धर्मांतरण कराने वाले लोगों के लिए कड़ा संदेश बताया। उन्होंने कहा कि यह कोई एक दिन की बात नहीं है, बल्कि पिछले 11 वर्षों में 15 हजार से अधिक परिवारों की घर वापसी कराई जा चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि मिशनरी संस्थाएं सेवा के नाम पर सौदा कर रही हैं, जो न केवल संविधान के विरुद्ध है, बल्कि सामाजिक समरसता के लिए भी खतरा है।
प्रबल प्रताप सिंह ने ईसाई मिशनरियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के जरिए लोगों को बहकाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने इसे "स्लीपर सेल" की तरह काम करने वाला नेटवर्क बताया। उनका दावा है कि कांग्रेस सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से मिशनरियों को शिक्षा और स्वास्थ्य का जिम्मा सौंपकर धर्मांतरण को बढ़ावा दिया।
घर वापसी करने वालों में शामिल सपरेली गांव की कविता सुमन ने बताया कि उन्हें मसीही समाज के लोगों ने बहकाया था। वे बार-बार आकर उनके धर्म की बुराई करते और मदद का वादा करते थे। धीरे-धीरे उनके प्रभाव में आकर उन्होंने धर्मांतरण कर लिया। अब उन्होंने पूर्वजों की परंपरा में लौटने का निर्णय लिया है।
कार्यक्रम में मौजूद घर वापसी संगठन और धर्माचार्यों ने कहा कि सेवा के नाम पर धर्मांतरण कराना निंदनीय है। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं किसी धर्म परिवर्तन की शर्त नहीं होनी चाहिए। उन्होंने मांग की कि केंद्र और राज्य सरकारें धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून बनाएँ और दोषियों को सख्त सजा दिलवाएं।
इस ‘घर वापसी’ कार्यक्रम का आयोजन धर्म सेना मातृ-शक्ति, सक्ती के तत्वावधान में "शिव शक्ति रूद्र महाभिषेक" के साथ किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय कथा वाचिका दीदी प्रज्ञा भारती, झोबा आश्रम के स्वामी दिव्यानंद (ओम बाबा), स्वामी कौशलेन्द्र कृष्ण महाराज, अंजू जयनारायण गबेल, कपिल शास्त्री, आचार्य राकेश और राजा सक्ती धर्मेंद्र सिंह जैसे कई प्रमुख धर्माचार्य उपस्थित थे।
यह घटना न केवल छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण को लेकर चल रही बहस को नई हवा देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि धार्मिक पहचान और मूल सांस्कृतिक जड़ों की वापसी की भावना समाज के कई हिस्सों में मजबूत हो रही है। आने वाले समय में इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चर्चा और तेज होने की संभावना है।