
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारत-अफगानिस्तान के बीच नई दिशा की बातचीत, मुत्ताकी बोले– “हमारी जमीन पर भारत विरोधी गतिविधियों की अनुमति नहीं देंगे”
नई दिल्ली: bbbbअफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की सात दिन की भारत यात्रा की शुरुआत दिल्ली के हैदराबाद हाउस में शुक्रवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हुई बैठक से हुई। यह 2021 में तालिबान शासन के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच पहली उच्च-स्तरीय कूटनीतिक मुलाकात रही। मीटिंग में भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों को नई दिशा देने, आतंकवाद के खतरे से निपटने, व्यापार बढ़ाने और मानवीय सहायता को लेकर विस्तार से चर्चा हुई।
तालिबान का बड़ा भरोसा: भारत को दोस्त मानता है काबुल
मुत्ताकी ने इस बैठक में भारत को भरोसा दिलाया कि अफगानिस्तान की जमीन से भारत-विरोधी किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि तालिबान भारत को एक “घनिष्ठ मित्र” मानता है और दोनों देशों के बीच रिश्तों को सम्मान, आपसी सहयोग और लोगों के संपर्क पर आधारित बनाया जाएगा। मुत्ताकी ने कहा, “अफगानिस्तान में हाल ही में आए भूकंप के दौरान भारत सबसे पहले मदद के लिए आगे आया। यह हमारे आपसी संबंधों की गहराई दिखाता है।”
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापारिक सहयोग के लिए भारत के साथ परामर्श तंत्र बनाने को तैयार है ताकि दोनों देश भविष्य की साझेदारी को और मजबूत कर सकें। मुत्ताकी के मुताबिक, अफगानिस्तान किसी भी समूह को अपने देश की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं करने देगा।
जयशंकर का जवाब: “अफगान लोगों के साथ खड़ा रहेगा भारत”
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मुत्ताकी का स्वागत करते हुए कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए भारत पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा अफगान लोगों के साथ खड़ा रहा है—चाहे वह मानवीय सहायता हो, शिक्षा, या विकास परियोजनाएं। जयशंकर ने बैठक को दोनों देशों के संबंधों में “महत्वपूर्ण कदम” करार दिया।
जयशंकर ने कहा कि भारत अफगानिस्तान के विकास और स्थिरता के लिए हर संभव सहयोग देने को तैयार है, बशर्ते यह सहयोग क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के अनुरूप हो।
भारत ने बढ़ाया एक कदम आगे: अब दूतावास का दर्जा
बैठक का एक अहम निर्णय यह रहा कि भारत ने काबुल में अपने टेक्निकल मिशन को अब भारतीय दूतावास का दर्जा देने का फैसला किया है। यह कूटनीतिक दृष्टि से बड़ा संकेत है कि भारत तालिबान शासित अफगानिस्तान के साथ संपर्क बढ़ाने के लिए तैयार है। हालांकि, तालिबान सरकार की औपचारिक मान्यता का फैसला अभी लंबित है और यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर तय किया जाएगा।
भारत का यह फैसला संकेत देता है कि आने वाले महीनों में काबुल में राजनयिक गतिविधियां तेज हो सकती हैं। भविष्य में भारत वहां अपने किसी राजदूत या *चार्ज द’अफेयर्स (CDA)* को नियुक्त कर सकता है।
मुत्ताकी को मिली यूएन छूट, सात दिन भारत प्रवास
अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी इस समय संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के तहत यात्रा करने के लिए अस्थायी छूट पर भारत पहुंचे हैं। उन पर यात्रा और संपत्ति से जुड़े प्रतिबंध लागू हैं, इसलिए उन्हें यह यात्रा करने के लिए यूएन सुरक्षा परिषद समिति से विशेष अनुमति मिली है। मुत्ताकी भारत में सात दिन रहेंगे और इस दौरान वे कई अन्य प्रमुख अधिकारियों से भी मुलाकात करने की संभावना है।
भारत-अफगानिस्तान के रिश्ते: नयी परिभाषा की शुरुआत
मुलाकात के बाद राजनयिक सूत्रों के मुताबिक, बातचीत सौहार्दपूर्ण और रचनात्मक रही। दोनों पक्षों ने आतंकवाद से निपटने की प्रतिबद्धता दोहराई और विकास परियोजनाओं तथा आर्थिक गतिविधियों को लेकर नए रास्ते खोजने पर सहमति जताई।
भारत पहले ही अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाएं चला चुका है। तालिबान शासन आने के बाद भारत का वहां सीमित दूतावास मिशन ही सक्रिय था, लेकिन इस बैठकी के बाद संकेत हैं कि भारत अब सक्रिय कूटनीतिक तंत्र की ओर लौट रहा है।
पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव
मुत्ताकी की इस यात्रा से पाकिस्तान में बेचैनी साफ देखी जा रही है। दरअसल, अफगानिस्तान द्वारा यह कहना कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ नहीं होने देगा, पाकिस्तान समर्थित आतंकी नेटवर्कों के लिए बड़ा संकेत है। कूटनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि इस बयान से भारत को रणनीतिक लाभ मिला है, जबकि इस्लामाबाद को चिंता कि कहीं तालिबान-भारत रिश्तों की गर्माहट उसकी भूमिका को कमजोर न कर दे।
जयशंकर-मुत्ताकी मुलाकात को दक्षिण एशिया में बदलते समीकरणों के लिहाज से अहम माना जा रहा है। भारत अब तक तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता देने से बचता आया है, लेकिन संवाद और संपर्क बढ़ाकर उसने यह संकेत दिया है कि वह जमीनी हकीकतों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
मीटिंग के मुख्य बिंदु
- भारत ने काबुल में अपने टेक्निकल मिशन को ‘भारतीय दूतावास’ का दर्जा दिया।
- तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी गई, इसलिए संयुक्त बैठक में दोनों देशों के झंडे नहीं लगाए गए।
- बातचीत में आतंकवाद से निपटने, व्यापार और मानवीय सहायता बढ़ाने पर जोर दिया गया।
- दोनों देशों ने आपसी परामर्श तंत्र बनाने और लोगों के बीच का संपर्क बढ़ाने पर सहमति जताई।
नई दिल्ली से संकेत – “सहयोग, लेकिन सतर्कता के साथ”
राजनयिक हलकों के मुताबिक, भारत का रवैया “सावधानी के साथ सहयोग” वाला है। भारत फिलहाल तालिबान पर भरोसा कर रहा है, लेकिन उसकी कार्यवाहियों पर नज़र रखेगा—खासकर यह कि क्या अफगानिस्तान वास्तव में आतंकवादी संगठनों को नियंत्रित कर पाता है या नहीं।
जयशंकर-मुत्ताकी मुलाकात से यह स्पष्ट है कि दक्षिण एशियाई राजनीति में नई कूटनीतिक लकीरें खींची जा रही हैं। भारत ने यह दिखा दिया है कि वह अफगानिस्तान को नज़रअंदाज़ करने की नीति से अब आगे बढ़ चुका है और उसकी प्राथमिकता है: “स्थिर, सुरक्षित और भारत-मित्र अफगानिस्तान।”