
हेल्थ डेस्क, आर्या कुमारी |
Non-alcoholic fatty liver disease risk factors: नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD), जिसे अब मेटाबॉलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टेलिक लिवर डिजीज (MASLD) कहा जाता है, आज के समय की एक आम बीमारी है. अमेरिका की केक मेडिसन (USC) की नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि फैटी लिवर के साथ अगर हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या कोलेस्ट्रॉल जैसी मेटाबॉलिक दिक्कतें हों, तो मौत का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें सबसे घातक फैक्टर शुगर नहीं, बल्कि ब्लड प्रेशर है.
क्या है MASLD?
पहले जिसे NAFLD कहा जाता था, अब उसे MASLD कहा जाता है. इस बीमारी में लिवर में फैट जमा हो जाता है, जो सूजन और लिवर डैमेज का कारण बनता है. यह बीमारी अक्सर मोटापा, हाई BP, डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं के साथ जुड़ी होती है. USC की रिसर्च के मुताबिक, इनमें कुछ फैक्टर बाकी से कहीं ज्यादा जानलेवा साबित होते हैं.
पहला जोखिम: हाई ब्लड प्रेशर
रिसर्च के अनुसार, पहले माना जाता था कि डायबिटीज सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन अब स्टडी बताती है कि हाई BP वाले MASLD मरीजों में मौत का जोखिम करीब 40% तक बढ़ जाता है. ब्लड प्रेशर ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचाता है, दिल पर दबाव बढ़ाता है और लिवर तक ब्लड फ्लो को बिगाड़ देता है. अगर लिवर पहले से कमजोर हो, तो यह “डबल अटैक” साबित होता है.
दूसरा जोखिम: डायबिटीज या प्रीडायबिटीज
रिसर्च के मुताबिक, MASLD के साथ डायबिटीज या प्रीडायबिटीज होने पर मौत का खतरा करीब 25% तक बढ़ जाता है. बढ़ता ब्लड शुगर और इंसुलिन रेजिस्टेंस लिवर समेत कई अंगों को प्रभावित करता है, जिससे जोखिम और बढ़ जाता है.
तीसरा जोखिम: HDL कोलेस्ट्रॉल
स्टडी कहती है कि यदि किसी MASLD मरीज का गुड कोलेस्ट्रॉल (HDL) कम है, तो मौत का जोखिम 15% तक बढ़ सकता है. क्योंकि HDL शरीर से खराब फैट हटाने और सूजन कम करने में मदद करता है. इसके कम होने से शरीर की सुरक्षा ढाल कमजोर हो जाती है.
मोटापा और अन्य फैक्टर्स
यदि किसी को MASLD के साथ हाई BP, डायबिटीज, लो HDL और मोटापा — ये चारों दिक्कतें हैं, तो उसका जोखिम किसी सिंगल फैक्टर वाले मरीज की तुलना में कई गुना बढ़ जाता है. यानी हर नया फैक्टर मौत का खतरा और बढ़ा देता है.
कैसे करें बचाव?
डायबिटीज कंट्रोल करें, कार्बोहाइड्रेट सेवन पर ध्यान दें, रोज एक्सरसाइज करें और ब्लड शुगर की निगरानी रखें. अपने लिपिड प्रोफाइल और खासतौर पर HDL को सुधारें. वजन नियंत्रित रखें, क्योंकि अतिरिक्त वजन लिवर पर दबाव बढ़ाता है. किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें — डॉक्टर से सलाह लेकर ऐसा रूटीन बनाएं जो ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल को संतुलित रखे. साथ ही हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं और रोज 7-8 घंटे की नींद लें.