नेशनल डेस्क , श्रेयांश पराशर l
संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित समारोह में कहा कि भारत का संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता, पहचान और लोकतांत्रिक मान्यताओं का जीवंत ग्रंथ है। उन्होंने कहा कि बीते दशकों में भारतीय संसद ने संविधान के मूल्यों को आत्मसात करते हुए जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि संविधान सभा द्वारा संसदीय प्रणाली को अपनाने के पक्ष में दिए गए तर्क आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने इसे भारत की लोकतांत्रिक यात्रा की सबसे बड़ी शक्ति बताया। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान निर्माताओं का उद्देश्य था कि संविधान हमारे सामूहिक और व्यक्तिगत स्वाभिमान को सुरक्षित रखे, और आज इसमें संसद ने उल्लेखनीय योगदान दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि देश के सामाजिक न्याय के आदर्शों को साकार करने के लिए सरकार लगातार समावेशी विकास के प्रयास कर रही है। 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' को इसका महत्वपूर्ण उदाहरण बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह निर्णय महिलाओं को नेतृत्व के नए अवसर प्रदान करेगा।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से अग्रसर है, और लगभग 25 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से बाहर आने से वैश्विक स्तर पर आर्थिक न्याय के पैमाने पर भारत ने ऐतिहासिक सफलता अर्जित की है। उन्होंने 'वंदे मातरम्' की रचना के 150 वर्ष पूरे होने पर मनाए जा रहे राष्ट्रीय स्मरणोत्सव को भारत माता को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प का अवसर बताया।
संविधान में संशोधन प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें निहित लचीलापन इसे समयानुसार गतिशीलता और जीवंतता प्रदान करता है। अंत में उन्होंने संसद सदस्यों से राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणा देने और जन-आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में सक्रिय योगदान का आह्वान किया।







