
नेशनल डेस्क, श्रेया पांडे |
दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) संस्थान में एक वरिष्ठ चिकित्सक की बर्खास्तगी को लेकर हाल ही में एक बड़ा राजनीतिक विवाद उभर कर सामने आया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने आरोप लगाया है कि यह बर्खास्तगी पूरी तरह से भाजपा सरकार द्वारा की गई एक बदले की कार्रवाई है, जिसमें सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया गया।
AAP ने दावा किया कि यह कार्रवाई एक "एंटी-डिफेमेटरी" एफआईआर के आधार पर की गई, जो झूठे तथ्यों पर आधारित है। पार्टी के अनुसार, संबंधित डॉक्टर ने पूर्व में सरकार की कुछ योजनाओं और संस्थानों की पारदर्शिता पर सवाल उठाए थे, जिससे सरकार असहज हो गई थी। इसी कारण से उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
AAP प्रवक्ताओं ने यह भी कहा कि यह मामला केवल एक डॉक्टर की बर्खास्तगी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की स्वायत्त संस्थाओं की स्वतंत्रता पर हमला है। अगर सरकारें संस्थानों पर राजनीतिक दबाव डालकर कार्य करवाती हैं, तो इससे लोकतंत्र कमजोर होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है।
दूसरी ओर, भाजपा ने सभी आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि यह प्रशासनिक निर्णय नियमों के अनुसार लिया गया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि संबंधित डॉक्टर पर नियमों की अवहेलना और सेवा विस्तार में अनियमितता के गंभीर आरोप थे, जिनके आधार पर कार्रवाई हुई।
यह मामला धीरे-धीरे केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई न रहकर राजनीतिक और संस्थागत स्वतंत्रता के मुद्दे में बदल चुका है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि ऐसे मामलों की न्यायिक जांच नहीं होती, तो आने वाले समय में संस्थानों की निष्पक्षता और जवाबदेही पर सवाल उठेंगे।