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नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |
जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। नेशनल कांफ्रेंस (NC) ने हाल ही में यह बयान दिया कि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर की स्थिति लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है और इसे जल्द से जल्द फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए। पार्टी के नेताओं ने हिमाचल प्रदेश के मॉडल का उदाहरण देते हुए कहा कि राज्यhood की बहाली के लिए नए चुनाव कराना अनिवार्य नहीं है, बल्कि वर्तमान विधानसभा के आधार पर यह प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
हिमाचल प्रदेश को वर्ष 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था, जब वहाँ विधान सभा पहले से अस्तित्व में थी। इसी तरह, जम्मू-कश्मीर में भी यदि केंद्र सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाए तो बिना चुनाव कराए ही राज्य का दर्जा वापस दिया जा सकता है। इस बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल देखी जा रही है। यह मुद्दा विशेष रूप से तब उभरा है जब क्षेत्रीय दलों को आशंका है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने से पहले राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा कर सकती है लेकिन बाद में उसे अनिश्चितकाल तक टाल सकती है।
नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में लोगों का आत्मविश्वास कमजोर हुआ है। सुरक्षा बलों की भारी तैनाती, प्रशासनिक निर्णयों में केंद्र का सीधा हस्तक्षेप, और स्थानीय नेताओं की उपेक्षा ने आम लोगों के बीच असंतोष बढ़ाया है। पार्टी का यह भी कहना है कि राज्य का दर्जा बहाल करने से न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी बल्कि क्षेत्रीय अस्मिता को भी पुनर्स्थापित किया जा सकेगा।
इस मुद्दे पर अन्य पार्टियों की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण रही है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी इस मांग का समर्थन करते हुए कहा कि राज्यhood की बहाली जम्मू-कश्मीर के लोगों का संवैधानिक अधिकार है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) का कहना है कि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे और विचारपूर्वक पूरी की जाएगी, लेकिन पहले सुरक्षा और विकास प्राथमिकता में रहेंगे।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मांग आगामी चुनावों से पहले और तेज हो सकती है, क्योंकि स्थानीय पार्टियाँ इसे चुनावी मुद्दा बनाकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहेंगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 की पुनर्व्याख्या को लेकर चल रही याचिकाओं के परिणाम का भी इस विषय पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग केवल एक संवैधानिक प्रश्न ही नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक महत्व भी रखती है।