
स्टेट डेस्क, श्रेया पांडेय |
बिहार की राजनीति में इन दिनों मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर गर्मागर्मी चरम पर है। इसी बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सत्ताधारी गठबंधन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि वैशाली की NDA की सांसद वीणा देवी के पास दो अलग-अलग मतदाता पहचान पत्र (EPIC) हैं।
तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दावा किया कि सांसद वीणा देवी के पास दो अलग-अलग EPIC नंबर हैं और दोनों पहचान पत्रों पर उनकी उम्र में अंतर है। उनका आरोप है कि सांसद दो अलग-अलग विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों में वोटर के रूप में दर्ज हैं, जो चुनाव नियमों के तहत स्पष्ट रूप से गलत है।
तेजस्वी के अनुसार, इस तरह का मामला तभी संभव है जब मतदाता ने दो अलग-अलग पंजीकरण फॉर्म भरे हों। उन्होंने सवाल उठाया कि आयोग ने इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की और इसे कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। उनका कहना है कि यह एक गंभीर गड़बड़ी है, जिसमें धांधली और मिलीभगत की आशंका है। उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की कि इस मामले की तत्काल जांच कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
तेजस्वी ने इस मामले को और आगे बढ़ाते हुए सांसद के पति और जेडीयू के एमएलसी दिनेश सिंह पर भी यही आरोप लगाया। उनका दावा है कि दिनेश सिंह के पास भी दो अलग-अलग EPIC नंबर हैं और वह दो अलग-अलग क्षेत्रों में वोटर के रूप में पंजीकृत हैं। तेजस्वी ने कहा कि यदि आयोग निष्पक्ष है तो वह दोनों पर समान रूप से कार्रवाई करेगा।
इस आरोप के बाद बिहार की सियासत में एक नई बहस छिड़ गई है। विपक्ष का कहना है कि SIR प्रक्रिया का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है और मतदाता सूची में गड़बड़ी कर सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाने की कोशिश हो रही है। तेजस्वी यादव का यह भी आरोप है कि इस तरह की घटनाएं केवल एक या दो व्यक्तियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा है जिसमें सत्ता पक्ष से जुड़े कई लोगों के नाम दो-दो जगह दर्ज हैं।
उन्होंने कहा कि यदि यह स्थिति बनी रही तो चुनाव की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े होंगे और जनता का भरोसा चुनावी प्रक्रिया से उठ सकता है। तेजस्वी ने लोगों से भी अपील की कि वे अपने नाम और विवरण मतदाता सूची में अवश्य जांच लें ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी को समय रहते पकड़ा जा सके।
इस विवाद पर सत्ताधारी दल और संबंधित सांसद की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे को लेकर चर्चाओं का दौर तेज़ हो गया है। कुछ लोग इसे चुनावी मौसम में विपक्ष द्वारा उठाया गया एक रणनीतिक मुद्दा मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था की पारदर्शिता से जुड़ा गंभीर मामला मानते हैं।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र यह विवाद और भी अहम हो गया है। SIR प्रक्रिया, जिसे मतदाता सूची को अद्यतन और सही बनाने के लिए शुरू किया गया था, अब खुद ही विवादों के घेरे में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या इन आरोपों का कोई ठोस प्रमाण सामने आता है या यह केवल राजनीतिक बयानबाज़ी साबित होती है।