
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी
ट्रंप का नोबेल सपना चूर-चूर: वेनेजुएला की 'लौ जलाने वाली' योद्धा मारिया कोरिना मचाडो को मिला 2025 का शांति पुरस्कार
वाशिंगटन: दुनिया की नजरें थरथराती उम्मीदों के बीच रुकीं, जब नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी ने 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का लंबा इंतजार खत्म हुआ, लेकिन नाकामी के धमाके के साथ। पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को सौंपा गया है, जिन्होंने तानाशाही के काले साये में लोकतंत्र की लौ को हवा न लगने दिया। कमेटी ने उन्हें "बढ़ते अंधकार के बीच लोकतंत्र की लौ जलाए रखने वाली" बहादुर शांति सेनानी करार दिया।
ट्रंप, जो खुद को मिडिल ईस्ट शांति समझौतों का मसीहा बताते रहे, इस बार भी खाली हाथ लौटे। व्हाइट हाउस से लीक हुई प्रतिक्रिया में कहा गया कि यह "राजनीति का खेल" है, लेकिन मचाडो की जीत ने वैश्विक मंच पर वेनेजुएला के दर्द को चीख चीखकर सुनाया। पुरस्कार की वैल्यू 11 मिलियन स्वीडिश क्रोन (करीब 1.2 मिलियन डॉलर) है, जो 10 दिसंबर को ओस्लो में औपचारिक रूप से भेंट किया जाएगा।
अधिनायकवाद की जंजीरें तोड़ने वाली 'आयरन लेडी' की अनकही दास्तान
मारिया कोरिना मचाडो का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। इंजीनियरिंग और फाइनेंस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कारोबार की दुनिया में कदम रखा, लेकिन जल्द ही सामाजिक न्याय की ओर रुख किया। 1992 में कराकस के सड़कों पर बेघर बच्चों के लिए एटेनिया फाउंडेशन की नींव रखी, जो आज भी उन अनाथों की आवाज बनता है। दस साल बाद, 2002 में सुमाते की सह-स्थापना की—एक संगठन जो स्वतंत्र चुनावों की अलख जगाता है, वोटरों को ट्रेनिंग देता है और धांधली की निगरानी करता है।
2010 में रिकॉर्ड वोटों से नेशनल असेंबली पहुंचीं, लेकिन 2014 में शासन ने उन्हें कुर्सी से खींच लिया। फिर भी हार न मानी। वेंटे वेनेजुएला पार्टी की कमान संभाली और 2017 में सोय वेनेजुएला गठबंधन गढ़ा, जो राजनीतिक खाईयों को पाटकर लोकतंत्र समर्थकों को एक मंच पर लाया। 2023 में 2024 राष्ट्रपति चुनाव के लिए मैदान में उतरीं, लेकिन सत्ता ने उन्हें नामांकन से ही बाहर कर दिया। उन्होंने हार नहीं मानी—विपक्ष के उम्मीदवार एडमंडो गोंजालेज उरुतिया को समर्थन दिया। विपक्ष ने सड़कों पर लाखों को उतारा, सबूत जुटाए कि असली जीत उनकी है। लेकिन निकोलस मादुरो शासन ने धांधली के आरोपों को ठुकराते हुए खुद को विजेता घोषित कर लिया, सत्ता की बागडोर कस ली।
मचाडो पर हमले हुए, गिरफ्तारी की धमकियां मिलीं, लेकिन वे अडिग रहीं। नोबेल कमेटी ने कहा, "उन्होंने वेनेजुएला के विपक्ष को एकजुट किया, समाज के सैन्यीकरण का डटकर मुकाबला किया। लोकतंत्र के औजार ही शांति के हथियार हैं—यह साबित किया।" आल्फ्रेड नोबेल के वसीयत के तीनों मापदंडों—भाईचारा, सेना विहीन दुनिया, लोकतांत्रिक मूल्य—पर खरी उतरीं।
ट्रंप को समर्पण: 'आप मेरे सहयोगी, वेनेजुएला की आजादी के योद्धा'
पुरस्कार मिलते ही मचाडो की आंखों में आंसू थे। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर बोलीं, "यह पुरस्कार वेनेजुएला के पीड़ितों का है—जिन्होंने दमन, आर्थिक तबाही और नागरिक अधिकारों की लूट झेली।" फिर आया वह मोड़ जो सुर्खियां चुरा ले गया: "मैं इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को समर्पित करती हूं, जिनका निर्णायक समर्थन हमारी लड़ाई का आधार बना। अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक देशों का शुक्रिया, जो वेनेजुएला की आजादी के हमसफर बने।"
ट्रंप ने तुरंत फोन किया, बधाई दी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने कहा, "आपकी हिम्मत ने दुनिया को दिखाया कि तानाशाहों का अंत लोकतंत्र से ही होता है।" व्हाइट हाउस ने इसे "ट्रंप की विदेश नीति की जीत" बताया, हालांकि ट्रंप का खुद का नोबेल दावा—जिसमें गाजा युद्धविराम और ईरान स्ट्राइक्स का जिक्र था—इस बार धूल चाट गया। रूस ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था, लेकिन कमेटी ने साफ कर दिया: शांति का पुरस्कार राजनीतिक दबाव से ऊपर है।
वैश्विक संदेश: लोकतंत्र हार मानने वाला नहीं
यह पुरस्कार सिर्फ मचाडो की जीत नहीं, बल्कि वैश्विक लोकतंत्र के लिए चेतावनी है। जहां अमेरिका-चीन तनाव, यूक्रेन युद्ध और मिडिल ईस्ट की आग भड़क रही है, वहां वेनेजुएला का संघर्ष प्रतीक बन गया। संयुक्त राष्ट्र ने इसे "वेनेजुएलावासियों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की मान्यता" कहा। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, खुद 2009 के विजेता, ने बधाई दी: "आपकी हिम्मत ने अधिनायकवाद को चुनौती दी।"