
लोकल डेस्क, मुस्कान कुमारी |
ट्रेन में इंजीनियर की हार्ट अटैक से मौत, CPR में देरी ने छीनी जान, क्या भारतीय रेल प्राथमिक चिकित्सा के लिए तैयार है?
सहरसा गरीब रथ एक्सप्रेस में सफर कर रहे एक 48 वर्षीय इंजीनियर की बुधवार सुबह अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। हादसे का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि आसपास मौजूद किसी भी यात्री को CPR (कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन) देना नहीं आता था। CPR मिलने में देरी हुई और अंततः श्रवण कुमार की जान नहीं बच सकी।
मृतक की पहचान गुरुग्राम के लक्ष्मी गार्डन, सेक्टर 11 निवासी श्रवण कुमार के रूप में हुई है, जो अपनी पत्नी और बेटे श्रेयश के साथ बिहार के मुजफ्फरपुर जा रहे थे। यह दुखद घटना उस समय हुई जब ट्रेन गाजियाबाद स्टेशन को बिना रुके पार कर रही थी।
घटना का क्रम:
ट्रेन में बैठे-बैठे श्रवण को अचानक सीने में तेज़ दर्द हुआ और वह अपनी सीट पर ही बेहोश होकर गिर पड़े। परिवार और सहयात्रियों ने शोर मचाकर मदद मांगी, लेकिन वहां मौजूद किसी यात्री को CPR देने का तरीका नहीं आता था।
रेलवे को जैसे ही इसकी सूचना मिली, ट्रेन को तुरंत गाजियाबाद स्टेशन पर रोका गया। स्टेशन मास्टर ने नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सूचना दी और साथ ही जीआरपी को भी मौके पर बुलाया गया। कुछ ही देर में जीआरपी इंस्पेक्टर संजीव कुमार मौके पर पहुंचे और उन्होंने श्रवण को CPR देने की कोशिश की।
हालांकि उस समय तक काफी देर हो चुकी थी। स्वास्थ्य विभाग की टीम भी थोड़ी देर बाद पहुंची, लेकिन डॉक्टरों ने श्रवण को मृत घोषित कर दिया।
‘गोल्डन मिनट्स’ में चूकी जिंदगी
मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार, हार्ट अटैक आने के बाद के पहले पांच मिनट को ‘गोल्डन फाइव मिनट्स’ कहा जाता है। यदि इस अवधि में मरीज़ को CPR मिल जाए, तो उसकी जान बचाई जा सकती है। लेकिन इस मामले में समय पर CPR नहीं मिलने से जान नहीं बच सकी।
परिवार की स्थिति और यात्रियों की प्रतिक्रिया
श्रवण की पत्नी और 18 वर्षीय बेटा इस घटना से स्तब्ध हैं। उन्होंने अपने सामने पति और पिता को दम तोड़ते देखा। स्टेशन पर रोती-बिलखती पत्नी को सहयात्रियों और जीआरपी कर्मियों ने संभाला।
घटना के समय ट्रेन में मौजूद कुछ यात्रियों ने कहा कि रेलवे को ऐसे मामलों के लिए पहले से तैयारी रखनी चाहिए। “अगर किसी को CPR आता होता या ट्रेन में प्राथमिक चिकित्सा देने वाला कर्मी होता, तो शायद वे बच जाते,” एक यात्री ने कहा।
रेलवे की व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने भारतीय रेलवे की आपात चिकित्सा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यात्रियों की संख्या और रोजाना के ट्रैफिक को देखते हुए, क्या ट्रेनों में CPR देने के लिए कोई प्रशिक्षित स्टाफ मौजूद होता है? क्या प्रत्येक कोच में प्राथमिक चिकित्सा किट और सुविधा होनी चाहिए?
रेलवे अधिकारियों ने फिलहाल इस मामले की जांच शुरू करने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए नई गाइडलाइन्स तैयार की जाएंगी।
विशेषज्ञों की राय: CPR का प्रशिक्षण अनिवार्य हो
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में आम नागरिकों को CPR और प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण देना अब आवश्यक हो गया है। ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती हैं जहाँ त्वरित प्राथमिक सहायता नहीं मिल पाने के कारण जान जाती है।
AIIMS के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राकेश शर्मा के अनुसार, “अगर CPR देना स्कूलों, कॉलेजों और पब्लिक प्लेस पर अनिवार्य रूप से सिखाया जाए, तो हर साल हजारों जानें बच सकती हैं।”
भविष्य की ज़रूरतें और समाधान
रेलवे जैसे सार्वजनिक परिवहन में हर ट्रेन में कम-से-कम एक CPR प्रशिक्षित कर्मचारी होना चाहिए। इसके अलावा:
सभी कोच में CPR निर्देश कार्ड और प्राथमिक चिकित्सा किट होनी चाहिए।
यात्रा शुरू होने से पहले ऑडियो घोषणाओं के माध्यम से यात्रियों को आपातकालीन प्रक्रिया के बारे में बताया जाना चाहिए।
रेल स्टाफ को नियमित तौर पर प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण दिया जाए।
समाज के लिए संदेश
श्रवण की दुखद मौत ने पूरे समाज को यह संदेश दिया है कि प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी सिर्फ डॉक्टरों के लिए नहीं है। हर नागरिक को यह आना चाहिए कि कैसे किसी को CPR देकर उसकी जान बचाई जा सकती है।
रेलवे का आधिकारिक बयान
उत्तर रेलवे के एक अधिकारी ने कहा कि घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे सीख लेते हुए रेलवे भविष्य में CPR से जुड़े ट्रेनिंग और मेडिकल सुविधा को ट्रेनों में विस्तार देने पर विचार करेगा। “हम यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध हैं,” उन्होंने कहा।