
स्टेट डेस्क, नीतीश कुमार |
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए सवाल उठाया कि आख़िर चुनाव से ठीक पहले ही वोटर लिस्ट क्यों तैयार की जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि इलेक्शन कमीशन ने पुरानी मतदाता सूची को हटाकर नई लिस्ट बनाने का निर्णय अचानक लिया है, जिसका उद्देश्य सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाना है।
तेजस्वी ने कहा कि इतने कम समय में पूरे बिहार के लोगों की नई मतदाता सूची बनाना संभव नहीं है। उन्होंने पूछा, “जब पिछले बार इसे तैयार करने में दो साल लगे थे, तो अब सिर्फ एक महीने में ये कैसे संभव होगा?”
तेजस्वी का आरोप है कि 90 फीसदी बीएलओ को अब तक मतदाता सूची उपलब्ध नहीं कराई गई है, और राज्य सरकार का इरादा पहले नाम हटाने, फिर राशन और पेंशन बंद करने का है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार जिन दस्तावेजों की मांग कर रही है, वो गरीब लोग कहां से लाएंगे, जबकि आधार और मनरेगा कार्ड को मान्यता नहीं दी जा रही है।
उन्होंने याद दिलाया कि इलेक्शन कमीशन पहले कह चुका है कि वोटर कार्ड को आधार से लिंक किया जाए, लेकिन बिहार में इस पर अमल क्यों नहीं हुआ। साथ ही तेजस्वी ने इस बात पर चिंता जताई कि चुनाव से पहले मतदाता सूची में फेरबदल करना लोकतांत्रिक रूप से उचित नहीं है, और RSS के एक नेता द्वारा संविधान बदलने की बात को लेकर भी सवाल उठाया।
तेजस्वी के मुताबिक, बिहार में 8 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें से 4 करोड़ 76 लाख लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। इस प्रक्रिया में 3 वर्ग बनाकर दस्तावेज मांगे जा रहे हैं:
• पहला वर्ग: 39 से 40 वर्ष की उम्र वाले, जिन्हें अपनी नागरिकता का प्रमाण देना होगा,
• दूसरा वर्ग: 20 से 38 वर्ष के लोग, जिन्हें अपने माता-पिता की नागरिकता दिखानी होगी,
• तीसरा वर्ग: 18 से 20 वर्ष की उम्र के 11% युवा, जिन्हें भी माता-पिता की नागरिकता साबित करनी पड़ेगी।
उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग द्वारा मान्य 11 दस्तावेजों में से 3 कॉमन हैं जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र और मैट्रिक प्रमाण पत्र। लेकिन 40 से 60 वर्ष के लोगों में केवल 13% हाई स्कूल पास हैं, और जाति प्रमाण पत्र की उपलब्धता भी बहुत सीमित है। 20% पिछड़े, 25% अति पिछड़े, और केवल 5% सामान्य वर्ग के पास ही यह है।
तेजस्वी ने कहा कि यह पूरा प्रयास चुनाव से पहले मतदाताओं की छंटनी कर सत्ता पक्ष को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के अनुसार बिहार से करीब 3 करोड़ लोग पलायन कर चुके हैं, तो फिर उनके वोटर कार्ड कैसे बनेंगे?
अंत में उन्होंने सवाल उठाया कि अगर वास्तव में सुधार की मंशा थी, तो लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद इस प्रक्रिया की शुरुआत क्यों नहीं की गई?