
नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |
दलाई लामा ही तय करेंगे अपना उत्तराधिकारी, किरेन रिजिजू ने चीन के दावे को खारिज किया
धर्मशाला: केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 जुलाई 2025 को स्पष्ट किया कि दलाई लामा का पुनर्जनन केवल उनकी स्वयं की इच्छा और तिब्बती बौद्ध परंपराओं के आधार पर होगा। यह बयान चीन के उस दावे के खिलाफ है, जिसमें बीजिंग ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी को अपनी मंजूरी और “गोल्डन अर्न लॉटरी प्रक्रिया” के तहत चुने जाने की बात कही है। रिजिजू का यह बयान दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह से पहले आया है, जो 6 जुलाई 2025 को धर्मशाला में आयोजित होगा, जहां भारत सरकार का प्रतिनिधित्व रिजिजू और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह करेंगे। दलाई लामा ने भी गदेन फोडरंग ट्रस्ट को अपने उत्तराधिकारी की पहचान का एकमात्र अधिकार दिया है, जिससे चीन के हस्तक्षेप को स्पष्ट रूप से खारिज किया गया है।
भारत का दृढ़ रुख: आध्यात्मिक स्वायत्तता का समर्थन
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने जोर देकर कहा कि दलाई लामा का पुनर्जनन एक आध्यात्मिक मामला है, जिसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने तिब्बती बौद्ध परंपराओं और स्थापित रीति-रिवाजों का हवाला देते हुए कहा कि यह निर्णय पूरी तरह से दलाई लामा और उनकी स्थापित संस्था, गदेन फोडरंग ट्रस्ट, के हाथ में है। यह बयान भारत की उस नीति को रेखांकित करता है, जो तिब्बती धार्मिक स्वायत्तता का समर्थन करती है और चीन के नियंत्रण को अस्वीकार करती है। रिजिजू का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा भारत-चीन संबंधों में एक प्रमुख विवाद बिंदु बन गया है।
चीन का दावा: उत्तराधिकारी पर नियंत्रण की मांग
चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन पर अपनी मंजूरी को अनिवार्य बताया है। बीजिंग का कहना है कि उत्तराधिकारी का चयन “गोल्डन अर्न लॉटरी प्रक्रिया” के तहत होना चाहिए, जो ऐतिहासिक रूप से किंग राजवंश द्वारा उपयोग की गई थी। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग और दिल्ली में चीनी राजदूत ने हाल ही में इस बात को दोहराया कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी चीनी कानूनों के अनुसार चुना जाएगा। चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी व्यक्ति के रूप में देखता है और तिब्बत पर अपनी संप्रभुता को मजबूत करने के लिए उनके उत्तराधिकार पर नियंत्रण चाहता है।
दलाई लामा का स्पष्ट बयान
1959 से भारत में निर्वासित दलाई लामा ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान का अधिकार केवल गदेन फोडरंग ट्रस्ट के पास है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उत्तराधिकारी चीन में जन्म नहीं लेगा, जिससे बीजिंग के नियंत्रण की योजना को सीधे चुनौती दी गई है। दलाई लामा का यह बयान उनके 90वें जन्मदिन के अवसर पर और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चर्चाएं तेज हो रही हैं।
धर्मशाला में 90वां जन्मदिन: भारत का समर्थन
6 जुलाई 2025 को धर्मशाला में आयोजित होने वाले दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह में भारत सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्रियों किरेन रिजिजू और राजीव रंजन सिंह की मौजूदगी इस मुद्दे पर भारत के दृढ़ रुख को दर्शाती है। यह समारोह न केवल दलाई लामा के प्रति भारत के सम्मान को दर्शाएगा, बल्कि तिब्बती समुदाय और उनकी धार्मिक स्वायत्तता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करेगा। यह आयोजन वैश्विक ध्यान आकर्षित करने की संभावना है, क्योंकि दलाई लामा का उत्तराधिकार एक संवेदनशील और वैश्विक महत्व का विषय बन चुका है।
भारत-चीन तनाव: तिब्बत का सवाल
दलाई लामा का उत्तराधिकार न केवल एक धार्मिक मुद्दा है, बल्कि यह भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक तनाव का एक महत्वपूर्ण बिंदु भी है। 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा के भारत में शरण लेने के बाद से ही तिब्बत का मुद्दा दोनों देशों के बीच तनाव का कारण रहा है। भारत ने दलाई लामा को एक सम्मानित धार्मिक नेता के रूप में मान्यता दी है और तिब्बती सरकार-इन-एक्साइल को शरण दी है। दूसरी ओर, चीन तिब्बत पर अपनी संप्रभुता को मजबूत करने के लिए दलाई लामा के उत्तराधिकार पर नियंत्रण चाहता है, ताकि वह एक ऐसा उत्तराधिकारी नियुक्त कर सके, जो बीजिंग के प्रति वफादार हो।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और रणनीतिक महत्व
दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा दशकों से भारत-चीन संबंधों में एक विवादास्पद बिंदु रहा है। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2024 में विजय गोखले के एक शोध पत्र ने इस मुद्दे के रणनीतिक निहितार्थों को उजागर किया, जिसमें भारत-चीन संबंधों में संभावित तनाव बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया। भारत का दृढ़ रुख, जैसा कि रिजिजू के बयान में दिखता है, न केवल तिब्बती धार्मिक स्वायत्तता का समर्थन करता है, बल्कि क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति को भी दर्शाता है।
सामाजिक मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
इस मुद्दे ने सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा उत्पन्न की है। कुछ उपयोगकर्ताओं ने दलाई लामा के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि उनका उत्तराधिकारी चीन में जन्म नहीं लेगा, जबकि अन्य ने चीन के दावों को लेकर आलोचना की है। ये प्रतिक्रियाएं, हालांकि आधिकारिक नहीं हैं, जनता की राय और इस मुद्दे पर वैश्विक रुचि को दर्शाती हैं।
आगे की राह
दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा आने वाले समय में भारत-चीन संबंधों को और जटिल कर सकता है। भारत का यह रुख, कि दलाई लामा और उनकी संस्था ही उत्तराधिकारी का फैसला करेंगे, तिब्बती समुदाय के लिए एक मजबूत संदेश है। दूसरी ओर, चीन का दावा कि उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी की आवश्यकता होगी, इस मुद्दे को और विवादास्पद बनाता है। धर्मशाला में होने वाला जन्मदिन समारोह इस मुद्दे को वैश्विक मंच पर और अधिक उजागर करेगा।