
स्टेट डेस्क, मुस्कान कुमारी |
लखनऊ: दारुल उलूम देवबंद ने शनिवार को स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की मदरसे की यात्रा के दौरान महिला पत्रकारों पर कोई पाबंदी नहीं थी। मदरसे के प्रवक्ता और कार्यक्रम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने कहा, "न तो अफगान विदेश मंत्री के कार्यालय और न ही हमारी ओर से कोई निर्देश था कि महिला पत्रकार कवरेज नहीं कर सकतीं।" उन्होंने ऐसी खबरों को "पूरी तरह बेबुनियाद" बताकर खारिज किया।
यह बयान दिल्ली में शुक्रवार को हुई अफगान मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की अनुपस्थिति से उपजे विवाद के बाद आया। उस घटना को विपक्ष ने "महिलाओं का अपमान" करार दिया, जबकि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स (आईडब्ल्यूपीसी) ने इसे भेदभावपूर्ण ठहराया।
कार्यक्रम रद्द: भीड़ और सुरक्षा बनी वजह
शनिवार को देवबंद में अफगान विदेश मंत्री का सार्वजनिक कार्यक्रम आखिरी समय पर रद्द करना पड़ा। उस्मानी ने बताया कि भीड़ बढ़ने और सुरक्षा चिंताओं के चलते जिला प्रशासन ने यह फैसला लिया। "महिला पत्रकारों की उपस्थिति पर कोई रोक नहीं थी। कुछ महिला पत्रकार वहां मौजूद भी थीं, जो उन दावों का खंडन करती हैं कि उन्हें रोका गया," उन्होंने कहा।
उस्मानी ने उन समाचार चैनलों का जिक्र भी किया, जिनकी महिला पत्रकार कार्यक्रम स्थल पर थीं। "लोगों की संख्या उम्मीद से कहीं ज्यादा थी। सुरक्षा कारणों से कार्यक्रम रद्द करना पड़ा," उन्होंने जोड़ा।
देवबंद में आयोजन: कोई भेदभाव नहीं
दारुल उलूम देवबंद द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कवरेज के लिए महिला और पुरुष पत्रकारों के लिए एकसमान व्यवस्था थी। उस्मानी ने स्पष्ट किया, "महिला पत्रकारों को पुरुषों के साथ बैठने की पूरी सुविधा थी। न कोई पर्दा था, न कोई अलगाव।" जब अफगान मंत्री गेस्ट हाउस में लंच कर रहे थे, तब भीड़ के कारण हालात अनियंत्रित हो गए। "प्रशासन ने कार्यक्रम रद्द किया, लेकिन हमने जल्दी से गेस्ट हाउस में मीडिया के लिए एक संक्षिप्त बातचीत का इंतजाम किया, ताकि मंत्री दिल्ली रवाना होने से पहले पत्रकारों से मिल सकें," उस्मानी ने बताया।
दिल्ली प्रेस कॉन्फ्रेंस: संयोग या विवाद?
शुक्रवार को दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोई महिला पत्रकार नहीं थी, जिसने विवाद को जन्म दिया। तालिबान शासन की महिला अधिकारों को लेकर आलोचना के बीच इस घटना ने तूल पकड़ा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इसे संयोग बताया। "महिलाओं को प्रेस कॉन्फ्रेंस में आने से नहीं रोका गया। यह गलत प्रचार है," उन्होंने कहा।
भारत के विदेश मंत्रालय ने भी साफ किया कि दिल्ली की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसकी कोई भूमिका नहीं थी और महिला पत्रकारों की अनुपस्थिति के लिए वह जिम्मेदार नहीं है।
व्यापक संदर्भ: भारत-अफगान संबंध और प्रतिक्रियाएं
यह घटना ऐसे समय में हुई, जब भारत-अफगानिस्तान के संयुक्त बयान पर पाकिस्तान ने अफगान दूत को तलब किया है। मीडिया संगठनों ने दिल्ली की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिलाओं की अनुपस्थिति की कड़ी आलोचना की, लेकिन देवबंद के आयोजकों ने बार-बार दोहराया कि उनके कार्यक्रम में कोई भेदभाव नहीं हुआ।
उस्मानी ने अफवाहों पर विराम लगाते हुए कहा, "यह कहा गया कि महिला पत्रकारों को रोका गया या उन्हें अलग बैठाया गया। ये सभी दावे झूठे हैं।"
सच क्या है?
महिला पत्रकारों पर पाबंदी की खबरें पूरी तरह गलत साबित हुई हैं। दारुल उलूम देवबंद और आयोजकों ने साफ किया कि:
- कवरेज के लिए महिला पत्रकारों पर कोई रोक नहीं थी।
- महिला और पुरुष पत्रकारों के लिए एकसमान व्यवस्था थी।
- कुछ महिला पत्रकारों की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि कोई भेदभाव नहीं हुआ।
- दिल्ली की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिलाओं की अनुपस्थिति संयोग थी, न कि किसी नीति का परिणाम।