
स्टेट डेस्क, वेरोनिका राय |
बिहार की सबसे युवा मुखिया पूजा कुमारी 15 अगस्त को लाल किले पर होंगी सम्मानित, पीएम मोदी से करेंगी मुलाकात; महिला सशक्तिकरण और विकास की बनी मिसाल
बिहार के गया जिले की गरारी पंचायत की मुखिया पूजा कुमारी इस स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर आयोजित मुख्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी। 25 वर्षीय पूजा राज्य की सबसे युवा और दो बार निर्वाचित मुखिया हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में पंचायत को महिला सशक्तिकरण और विकास का आदर्श मॉडल बनाया है। यह सम्मान न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे बिहार के लिए गौरव का क्षण है।
पूजा का कहना है कि "नेतृत्व उम्र से नहीं, बल्कि संकल्प और संवेदनशीलता से तय होता है।" उन्होंने अपने प्रयासों से यह साबित कर दिखाया है कि गांव की महिलाएं भी प्रशासनिक और सामाजिक बदलाव की धुरी बन सकती हैं।
पूजा बताती हैं कि जनसेवा का बीज उन्हें अपने दादा ससुर से विरासत में मिला। कुछ वर्ष पहले तक गरारी पंचायत की महिलाएं अपने अधिकारों से लगभग अनभिज्ञ थीं, लेकिन आज यह पंचायत "वूमेन फ्रेंडली पंचायत" के रूप में जानी जाती है। उन्होंने मनरेगा और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा। इसके परिणामस्वरूप महिलाएं आत्मनिर्भर हुईं और घरेलू हिंसा की घटनाओं में भी कमी आई।
गया जिले की 320 पंचायतों में पहली बार महिला आमसभा की शुरुआत पूजा ने की। इस कदम ने पंचायत में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया। इस पहल को सामाजिक संगठनों और प्रशासनिक अधिकारियों ने भी सराहा।
गरारी पंचायत में हर बुधवार को पंचायत भवन में ‘जनता दरबार’ आयोजित होता है। यहां गांव वालों की समस्याएं सुनी जाती हैं और त्वरित समाधान के प्रयास किए जाते हैं। यह व्यवस्था पारदर्शिता और जवाबदेही का उदाहरण बन चुकी है।
मुखिया बनने से पहले गांव में शिक्षा की स्थिति कमजोर थी। पूजा ने स्कूलों की चारदीवारी का निर्माण करवाया, पुस्तकालय की स्थापना की और सरकारी भवनों में पोषणयुक्त रसोई की शुरुआत की। नल-जल योजना के तहत घर-घर शुद्ध पेयजल पहुंचाना भी उनकी प्राथमिकता रही।
युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए पूजा ने जागरूकता अभियान चलाया। जिन युवाओं को पहले से नशे की आदत थी, उनके माता-पिता से बातचीत कर उन्हें नशा मुक्ति केंद्र भेजा गया। बच्चों को ‘बाल सभा’ के माध्यम से नशे के दुष्प्रभाव के बारे में शिक्षित किया जा रहा है।
पूजा उस धारणा को तोड़ती हैं कि महिलाओं को नेतृत्व के लिए पुरुष सहारे की आवश्यकता होती है। वे मानती हैं कि आत्मविश्वास और समर्पण के बल पर महिलाएं हर जिम्मेदारी निभा सकती हैं। उनके अनुसार, "अगर महिलाएं आत्मनिर्भर हों तो ‘मुखिया पति’ जैसे शब्द इतिहास बन जाएंगे।
पूजा के पास परिवार, बच्चा और पंचायत—तीनों की जिम्मेदारी है, लेकिन वह इसे बोझ नहीं बल्कि अवसर मानती हैं। वे कहती हैं, "महिलाओं के पास मां दुर्गा की तरह नौ हाथ होते हैं, जिससे वे हर जिम्मेदारी को निभा सकती हैं।"
महज 25 साल की उम्र में पूजा कुमारी ने साबित किया है कि बदलाव सत्ता से नहीं, सोच से आता है। लाल किले पर उनका सम्मान सिर्फ उनकी उपलब्धियों का नहीं, बल्कि उन सभी ग्रामीण महिलाओं की जीत है जो बदलाव लाने का सपना देखती हैं।
15 अगस्त को लाल किले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात न केवल उनके लिए गर्व का पल होगी, बल्कि पूरे बिहार के लिए यह एक प्रेरणादायक संदेश भी देगा कि गांव की मिट्टी से निकली युवा महिला भी राष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बना सकती है।