लोकल डेस्क, एन के सिंह।
पूर्वी चंपारण : मोतिहारी में पुलिस विभाग को शर्मिंदा कर देने वाली एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने स्थानीय पुलिस की ईमानदारी पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। गोविन्दगंज थाना क्षेत्र में जालसाजी और ठगी के एक मामले की जांच के दौरान बरामदगी से तीन लाख रुपये गायब कर देने के आरोप में चार सिपाहियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। यह घटना न सिर्फ पुलिस तंत्र पर सीधा प्रहार है बल्कि यह भी बताती है कि कानून की रक्षा की जिम्मेदारी जिन पर होती है, कभी कभी वही लोग कानून के सबसे बड़े उल्लंघनकर्ता बन जाते हैं।
मामला 20 नवंबर की ठगी से शुरू हुआ जब जौनपुर के मोहनजी गुप्ता से अपराधियों ने उन्नीस लाख रुपये नकद और सोने के गहने ठग लिए। पीड़ित के शिकायत दर्ज कराने के बाद गोविन्दगंज थाना में मामला दर्ज हुआ और उच्च अधिकारियों की देखरेख में एक विशेष पुलिस दल गठित किया गया। इस टीम का काम था अपराधियों का पता लगाना और ठगी का पूरा माल बरामद करना। शुरुआती जानकारी के आधार पर प्राथमिक अभियुक्त चंदन कुमार का ठिकाना चिन्हित किया गया और 21 नवंबर की रात उसी के घर पर छापेमारी की गई।
छापेमारी सफल रही और घर से नीले रंग के एक बैग में पंद्रह लाख रुपये नकद, दस पीस सोने जैसे बिस्कुट और एक सोने की चेन बरामद की गई। टीम ने मौके पर मौजूद दो और व्यक्तियों को गिरफ्तार किया और उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया। जब्त किए गए सामान की सूची तैयार की जा रही थी तभी वरिष्ठ अधिकारियों को संदेह हुआ कि बरामद संपत्ति की गिनती ठीक नहीं बैठ रही है। नकदी में तीन लाख रुपये कम पाए गए।
जैसे ही इस विसंगति का पता चला, तत्काल मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई। पूछताछ के दौरान चार सिपाहियों ने माना कि उन्होंने ही नकदी में से तीन लाख रुपये अलग निकालकर अपनी गाड़ी में रख दिए थे। इन सिपाहियों के नाम संतोष कुमार, गौतम कुमार यादव, कृष्णा कुमार और ओमप्रकाश बताए जा रहे हैं। सभी चारों ने अपराध स्वीकार कर लिया और इसके बाद पूरी राशि पुलिस ने बरामद कर ली।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए गोविन्दगंज थानाध्यक्ष ने उन्हें साहेबगंज थाना को सुपुर्द कर दिया जहां उनके खिलाफ लिखित आवेदन दिया गया। कार्रवाई इतनी त्वरित रही कि कुछ ही घंटों में चारों सिपाहियों को गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया। इस घटना ने पूरे पुलिस महकमे को हिलाकर रख दिया है। विभाग के अंदर भी यह चर्चा का विषय बना है कि यदि छापामारी के दौरान ही पुलिसकर्मी बरामद संपत्ति से छेड़छाड़ करने लगें तो आम जनता कैसे भरोसा करेगी।
वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं पुलिस की विश्वसनीयता पर गहरा आघात करती हैं और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। पुलिस विभाग अब इस मामले की विभागीय जांच भी शुरू करने जा रहा है ताकि पता लग सके कि दोषी सिपाहियों की मंशा कब और कैसे बनी और क्या इसमें किसी और की भूमिका थी। संबंधित अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि वर्दी की गरिमा को बचाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता है और किसी भी स्तर पर कदाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह घटना पुलिस पर उनके भरोसे को कमजोर करती है। वर्षों से लोग पुलिस को सुरक्षा का स्रोत मानकर मदद मांगते आए हैं, लेकिन जब वही पुलिस चोरी जैसे अपराध में लिप्त पाई जाए तो यह जनता के मन में भय और अविश्वास दोनों पैदा करता है। यह भी सच है कि पुलिस बल के भीतर ऐसे मामले दुर्लभ होते हैं, लेकिन जब भी सामने आते हैं तो उनका असर पूरे तंत्र की छवि पर पड़ता है।







