
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
नाटो शिखर सम्मेलन में ट्रंप की टिप्पणी ने वैश्विक बहस छेड़ी, आलोचकों ने बताया गैर-जिम्मेदाराना
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो शिखर सम्मेलन के दौरान ईरान के परमाणु स्थलों पर हाल के अमेरिकी हमलों की तुलना 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुई परमाणु बमबारी से की, जिसने वैश्विक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया। ट्रंप ने दावा किया कि इन हमलों ने इस्राएल-ईरान युद्ध को समाप्त कर दिया, लेकिन पेंटागन के खुफिया आकलन बताते हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम केवल कुछ महीनों के लिए प्रभावित हुआ। इस बयान को आलोचकों ने गैर-जिम्मेदाराना और ऐतिहासिक रूप से गलत करार दिया, खासकर जापान जैसे नाटो सहयोगी देशों के लिए, जो 1945 की बमबारी के दीर्घकालिक प्रभावों से जूझ रहे हैं।
ट्रंप का विवादास्पद बयान
नाटो शिखर सम्मेलन में प्रेस को संबोधित करते हुए, ट्रंप ने कहा, “उस हमले ने युद्ध को समाप्त कर दिया। मैं हिरोशिमा का उदाहरण नहीं देना चाहता, न ही नागासाकी का, लेकिन यह वही चीज थी जिसने उस युद्ध को खत्म किया। अगर हमने इसे नष्ट नहीं किया होता, तो वे अभी भी लड़ रहे होते।“ यह बयान 22 जून, 2025 को ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों—फोरडो, नतांज, और इस्फहान—पर अमेरिकी नेतृत्व वाले हमलों के संदर्भ में था। इन हमलों में बंकर-बस्टर बमों का उपयोग किया गया, जो भूमिगत सुविधाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। ट्रंप और रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने इसे “पूर्ण सफलता” बताया और दावा किया कि ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को “विनाश” कर दिया गया।
खुफिया आकलन: सीमित प्रभाव
पेंटागन के खुफिया आकलन ट्रंप के दावों के विपरीत तस्वीर पेश करते हैं। रक्षा खुफिया एजेंसी के अनुसार, हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को केवल कुछ महीनों के लिए पीछे धकेला। सेंट्रीफ्यूज और समृद्ध यूरेनियम के भंडार जैसे महत्वपूर्ण घटक बड़े पैमाने पर सुरक्षित रहे। हमलों से पहले ईरान ने अपने यूरेनियम भंडार को स्थानांतरित कर दिया था, जिससे नुकसान को कम किया गया। आकलन के मुताबिक, यदि ईरान परमाणु बम बनाने की दौड़ में शामिल होता, तो उसे पहले तीन महीने लगते, और अब यह समय छह महीने से कम हो सकता है। भूमिगत सुविधाओं के प्रवेश द्वार सील हुए, लेकिन उनकी मुख्य संरचनाएं बरकरार रहीं।
आलोचना और नैतिक चिंताएं
ट्रंप की हिरोशिमा और नागासाकी की तुलना ने वैश्विक स्तर पर तीखी आलोचना को जन्म दिया। शिकागो विश्वविद्यालय की इतिहासकार लौरा जेनकिंस ने कहा, “परंपरागत सैन्य हमलों को परमाणु बमबारी के विनाशकारी प्रभावों के साथ तुलना करना गलत और भ्रामक है। यह परमाणु युद्ध की विरासत को तुच्छ बनाता है।“ जापान, जो 1945 की बमबारी के दीर्घकालिक प्रभावों से जूझ रहा है, के लिए यह बयान विशेष रूप से संवेदनशील माना गया। हिरोशिमा और नागासाकी में 6 और 9 अगस्त, 1945 को गिराए गए परमाणु बमों ने तत्काल हजारों लोगों की जान ली और रेडिएशन से संबंधित बीमारियों का कारण बना। जापानी रेड क्रॉस अभी भी उन बचे लोगों का इलाज कर रहा है, जिन्हें हिबाकुशा कहा जाता है।
राजनीतिक वैज्ञानिक अफसानेह फरहादी ने कहा, “हिरोशिमा एक अनूठी त्रासदी थी। इसे आधुनिक युद्ध को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करना असंवेदनशील है, खासकर जब सबूत बताते हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अभी भी सक्रिय है।“ आलोचकों का मानना है कि यह तुलना ऐतिहासिक रूप से गलत है, क्योंकि 1945 की बमबारी ने द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त किया था, जबकि ईरान पर हमले एक विशिष्ट सैन्य लक्ष्य तक सीमित थे।
भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि
ये हमले इस्राएल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच हुए। 13 जून, 2025 को इस्राएल ने ईरान पर हमला किया, जिसके जवाब में ईरान ने मिसाइल और ड्रोन हमले किए। अमेरिका ने 22 जून को ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला कर क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा दिया। ईरान ने हमेशा दावा किया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन इस्राएल और अमेरिका जैसे सहयोगी देशों को इसके हथियार बनाने की क्षमता पर संदेह है।
हमलों के बाद, ईरान ने प्रतिशोध की धमकी दी है, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ने की आशंका है। नाटो सहयोगी, विशेष रूप से जापान, ने ट्रंप की टिप्पणी पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन माना जा रहा है कि यह बयान राजनयिक तनाव को बढ़ा सकता है।
हिरोशिमा और नागासाकी का ऐतिहासिक संदर्भ
1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी ने द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 6 अगस्त को हिरोशिमा पर “लिटिल बॉय” और 9 अगस्त को नागासाकी पर “फैट मैन” बम गिराए गए, जिससे तत्काल हजारों लोग मारे गए और शहर तबाह हो गए। इसके बाद, 15 अगस्त को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। इन बमबारी के दीर्घकालिक प्रभाव आज भी देखे जा सकते हैं, जिसमें कैंसर, आनुवंशिक क्षति, और मनोवैज्ञानिक आघात शामिल हैं।
वैश्विक प्रभाव और बहस
ट्रंप की टिप्पणी ने परमाणु युद्ध की नैतिकता और आधुनिक युद्ध में ऐसी तुलनाओं के प्रभाव को लेकर वैश्विक बहस को जन्म दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है, बल्कि यह उन देशों के प्रति असंवेदनशील भी है, जो परमाणु हथियारों के विनाशकारी प्रभावों से गुजरे हैं। यह बयान नाटो जैसे मंच पर, जहां सहयोगी देशों के बीच एकजुटता महत्वपूर्ण है, तनाव पैदा कर सकता है।
क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थ
ईरान ने हमलों को “गैर-कानूनी” करार दिया और जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी। इस बीच, इस्राएल ने इन हमलों का समर्थन किया, लेकिन क्षेत्रीय तनाव कम करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। सऊदी अरब जैसे अन्य क्षेत्रीय शक्तियों ने भी हमलों की निंदा की, जिससे मध्य पूर्व में तनाव और बढ़ सकता है।